दंश

मैं राधिका आप्टे घाटकोंपर के इलाके में एक छोटे से मकान में रहती थी ! मेरे पास मेरे पति की निशानी के तौर पर मेरी दो बेटियां अनिता व सुनीता थी ! मुझे काम के कारण दिन भर घर से बाहर रहना पड़ता था ! इनके पिता इन्हें पढ़ा लिखा कर एक अच्छा इंसान बनाना चाहते थे ! लेकिन हम लोगो के लिए काम करते करते एक दिन एक सड़क दुर्घटना में उनकी मौत हो गयी ! तब से पुरे परिवार का खर्च मेरे कंधों पर आ गया ! मैं एक कपड़ा मिल में काम करती थी , लेकिन हर जगह की तरह यहाँ भी महिलाओं का शोषण होता था ! मिल का मैनेजर व कुछ अन्य पुरुष स्टाफ के लोग मिल में काम करने वाली महिलाओं का आर्थिक व शारीरिक शोषण करते थे !
     एक दिन मेरे साथ काम करने वाली सरला सवालकर के साथ दूसरे ब्लॉक में मैनेजर रमाकांत गावड़े व उसके  दो साथियों ने बलात्कार करने का प्रयास किया! समय रहते मैं उनकी मंशा भांप गयी , और उनके पीछे पीछे  उसी ब्लॉक में आ गयी ! मैंने उन्हें रोकने का प्रयास किया किन्तु मैं अकेली थी  और उन लोगो पर शैतान सवार था ! सरला की इज़्ज़त बचाने के लिए मैंने पास ही पड़ी लोहे की रोड से उन लोगों पर हमला किया !
      जिसमे वह लोग घायल हो गए , मगर मेरे प्रहार से मैनेजर रमाकांत के सर पर चोट आई और उसकी मौके पर ही मौत हो गयी ! मुझे गिरफ़्तार कर लिया गया और हत्या के आरोप में मुझे १४ बरस के कारावास की सज़ा  हो गयी !  क्या सच में मैने गुनाह किया था ? क्या औरत की इज़्ज़त बचाना अपराध है ? हम औरतें रोज़ अपनी इज़्ज़त पर ये दंश झेलती हैं ! अब आप ही बताइए मैंने सही किया या गलत ? 


तारीख: 28.02.2024                                    कमाल खाँन









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है