कंस कारावास कृष्ण

हरि अनंत, हरि कथा अनंता। 

कृष्ण ही भगवान है। 


जरा सोचिये, जो समस्त सृष्टि के भगवान हैं वह यूं ही कारावास में जन्म लेते हैं। उनके माता पिता इतने वर्षों तक कठोर कारावास में रहते हैं इस तपस्या का तात्पर्य क्या है?  ऐसा क्यों है कि कृष्ण जन्म से पहले माता देवकी की छः संतानों का वध होता है??

आइए जानें कौन है कंस और कैसा है ये कारावास। यह जो कथा है एक समय विशेष की घटना न हो कर हमारे सम्पूर्ण जीवन में हरपल आने वाली परिस्थितियाँ हैं। हम सब के भीतर ही कंस है, कारावास है और कारावास से बाहर लाने वाले कृष्ण भी भीतर ही हैं। मायारचित इस संसार में गुण दोष रहित कोई वस्तु नहीं है। 

कंस का तात्पर्य है हमारे ही षडरिपु अर्थात्  काम क्रोध लोभ मोह मद और मात्सर्य। 

1 काम का अर्थ है अत्यधिक लालसा। (कामना,वासना)
2 क्रोध का अर्थ है गुस्सा और चिड़चिड़ाहट।
3 लोभ का अर्थ है लालच।
4 मोह का अर्थ है लगाव,आकर्षण।
5 मद का अर्थ है अभिमान या अहंकार।
6 मात्सर्य का अर्थ है ईर्ष्या, घृणा, जलन, दूसरों की समृद्धि और प्रगति सहन न होना।

जब सृष्टि में ये अवगुण बढ़ जाते हैं तो ये सब प्रकृति और पुरूष को अपने वश में कर लेते हैं अर्थात् देवकी और वासुदेव कंस के कारावास में जकड़ जाते हैं। देवकी और वासुदेव जो स्वयं भगवान को जन्म देने का सामर्थ्य रखते हैं क्या वे कंस को या उसके कारावास को नष्ट नहीं कर सकते हैं?  लेकिन जब सम्पूर्ण सृष्टि षडरिपु से जकड़ी हुई है तो भगवान ही पुरूष और प्रकृति के साथ मानव रूप में आते हैं और हमें ज्ञान का प्रकाश देते हैं।

कंस वह है जिसकी पत्नियां अस्ती और प्राप्ति हैं। अस्ति अर्थात् जो है और प्राप्ति वह जो हमारी लालसा है लेने की या संग्रह करने की। अर्थात् हम अस्ति और प्राप्ति में ही उलझते जाते हैं। ये अस्ति और प्राप्ति के पिता हैं जरासंध अर्थात् जो टुकड़ों को संधि करके या उनको जोड़कर बना है। यही थोड़ा थोड़ा जोड़कर ही अस्ति और प्राप्ति बनती हैं जो हमारे षडरिपु की वृद्घि  करती हैं। जब हम इन्हीं षडरिपु की रस्सियों से बंध कर कस जाते हैं तो कंस का अस्तित्व सामने आता है।

कंस ने जब माता देवकी की छः संतानों का वध किया है उससे हमें आभास होता है कंस के षडरिपु उस पर कितने हावी थे कि वह कोई भी अपराध कर सकता था। 

माता देवकी की यह छः संतानें कौन थीं और इनके वध का आज के भौतिक युग में क्या तात्पर्य है?  

पहली संतान है कीर्तिमान् अर्थात जब कंस पर काम नामक अवगुण का प्रभाव बढ़ा तो उसने स्वयं अपनी ही कीर्ति को नष्ट कर दिया। 

उसके बाद सुषेण अर्थात दिव्य अस्त्र या दिव्य ग्यान से सुसज्जित। जब मनुष्य पर क्रोध हावी होता है तो उसकी बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है उसका सम्पूर्ण ग्यान नष्ट हो जाता है जैसा कंस के भी साथ हुआ। 

माता के अन्य पुत्र का नाम है भद्रसेन अर्थात जो मनुष्य अच्छे, भद्र और हितैषी जनों से घिरा हो वह है भद्रसेन। लेकिन मानव का लोभ और लालसा उसके शुभचिंतकों को धीरे धीरे दूर कर देती है। 

अब हम बात करते हैं  ऋजु की अर्थात जो छल कपट रहित हो, जिसकी नियत पूर्णतः साफ हो।  लेकिन यदि मन में सर्वत्र मोह व्याप्त हो तो ऋजु वहाँ कैसे ठहर सकते हैं?  

माता ने जन्म दिया सम्मर्दन को अर्थात जो सात्विक ढंग से अपने मद, अभिमान व घमंड को नष्ट करे। परंतु हम सब जानते हैं कि कंस तो अपने ही अभिमान तले कुचला गया।  सम्मर्दन के वध से उसने अपने ही घमंड का विस्तार कर लिया था।  

छठा पुत्र भद्र। वह जो हर गुण से सुसज्जित हो। लेकिन मात्सर्य, ईर्ष्या और सब को हीन समझने की भावना हो तो सद्गुण वहाँ से चले जाते हैं। 

इस प्रकार हम सब लोगों के जीवन में भी कृष्ण भ्राता के रूप में सारी अच्छाइयाँ किसी न किसी रूप में आती रहती हैं। हमें इन सब गुणों को सहेजना है। किसी भी प्रकार कंसरूपी षड् रिपु हमारे ऊपर प्रभुत्व न बनाए।  


माता देवकी से फिर जन्म होता है संकर्षण अर्थात् बलराम का जो प्रभु का बल हैं और अब अवतार लेते हैं मेरे कृष्ण ।

कृष्ण का जन्म अंधेरे में कारावास में होता है। ऐसे ही हम भी बहुत बार अपने ही अज्ञान और अपेक्षाओं के अंधकार में घिर जाते हैं। इस अंधकार रूपी कारावास से निकलना ही हमारे जीवन का उद्देश्य होना चाहिए। एक बीज अंधकार और गहराई को चीर कर जब फूटता है तो ही समृद्धि का वृक्ष बनता है।
 
कृष्ण हैं प्रेम का आकर्षण। ऐसा प्रेम जिसके आते ही सारे बंधन छूट जाते हैं। जो मोह की बेडियाँ काटे वो है कृष्ण। मद या अभिमान से भरे कंस के सारे सैनिकों को पल में सुला दें वो है कृष्ण। काम या लालसा से बाहर निकलने का रास्ता दिखाएं वो है कृष्ण। क्रोध के कारावास से बाहर ले आएं वो है कृष्ण। लोभ से उफनते पानी के तुफान से पार कराएं वो है कृष्ण। मात्सर्य अर्थात् ईर्ष्या, घृणा और जलन से परे रसधाम गोकुल में ले जाएं वो है कृष्ण। 

हर रूप में प्रेम हर प्राणी में प्रेम ऐसे हैं मेरे कृष्ण। 

जय श्री कृष्ण । 
 


तारीख: 05.03.2024                                    डॉ गुंजन सर्राफ









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