बेबस सी दुनिया में चलते
आया वो कोई डगर पे,
अनजानी सी कोई खोज में
दूर हो गया वो खुद से.
अपने ही इरादों से पृथक
बिना कोई नाम या निशान
चल पड़े हम इस ज़िन्दगी में
करते हुए उस चुरीयी हुयी रूह का सम्मान.
निडर परिधान में ढके
उतरते हम जंग के मैदान में
तलवारों के संग लड़ते हम मौत तक
जाने बिना की दुश्मन बना हैं हमारी छाया से.
विचित्र हैं ना, यह रंगीन सी अस्तित्व?
जहा ख़ुशी के आभाव में हंसी पेश होती हैं
और निराश के घडी में क्रोध...
अपनाये बिना ही अपना लेते हम
वह मार्ग तकदीर के विरोध.