कोयल की कूक सुनी ,
जी मेरा मचलाया ।
नाच उठा मोर जंगल में,
जब सावन आया ।
खग मृग और परिंदे,
लगे चहकने अपनी अपनी भाषा में,
मेंढक ने भी टर टर का शोर मचाया,
चारों ओर कोलाहल सा छाया ।
तभी गगन में बिजली चमकी,
और बादलों के आपस में टकराने की,
आवाज़ से दिल घबराया,
लेकिन एक उमंग सी उठी
नए जीवन का वरदान लेकर,
अनुपम और सुंदर वर्षा ऋतु आई है ।
नन्हीं नन्हीं बूँदें पत्तों पर हैं बिखरी,
ऐसे मानो मोती झड़ रहे हैं जैसे ।
नत मस्तक प्रणाम उस कलाकार को ,
जिसने धरती पर हरी चादर बिछाई है,
और सातों रंगों को फैलाकर ,
गगन में इंद्रधनुष बनाया है।