मै
स्वयं कुछ भी नहीं, एक शून्य भर हूँ;
जिसका कोई मूल्य, कोई अर्थ नहीं |
जिसे कुछ कहने के लिए, अपने होने के अहसास के लिए,
आवश्यकता होती है—किसी की भी;
कैसा भी अंक हो—कोई भी छोटा-बड़ा|
शून्य, जिसे भरा सकता है काहे से भी,
जोड़ा जा सकता है—किसी के भी साथ!
शून्य, नाकार ना निराकार .....बंद भी, अनंत भी,
पता नहीं हूँ भी कि नहीं ....