वक्राकार जलेबी ही सरकारी शासन होता है
बाहर से सब ठीक मगर अन्धा प्रशासन होता है
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जब चुनाव आता है तब देखो बस इसकी नरमी को
पर विजयी उन्माद राग मदहोश इन्हें कर जाता है
नापाक इरादों को मन में रखकर ,हैं लहू चूसते लोगों का
पर रुप सदा बाहर से इनका साफ़ दिख जाता है
सच्चाई के पीछे नफ़रत की दिवार खड़ी करके
अपना उल्लू सीधा करना इन गिद्धो को आता है
वक्राकार जलेबी ही सरकारी शासन होता है
बाहर से सब ठीक मगर अन्धा प्रशासन होता है
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राहु रुप में छिपे छलिये वक्र दृष्टि से घात किए
पूर्ण चन्द्रमा को रह रह कर अपना ग्रास बताता है
ढ़का हुआ असली चेहरा नेपथ्य आड़ में सदा रहा
पर मछुआरा पीछे से अपनी वंशीजाल फैलाता है
भोली भाली जनता को अपनी जाल में फंसाता है
वक्राकार जलेबी ही सरकारी शासन होता है
बाहर से सब ठीक मगर अन्धा प्रशासन होता है
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