लाल सुर्ख रंग

इकिस्सवी शताब्दी और
वो चौदह साल की,
हाथ पीले, गले में मंगलसूत्र,
लाल सुर्ख रंग पांव में।
ये इस सदी की कविता क्यों है?
क्यों है ये दर्द अब भी जैसे का तैसा!
उसके दो घर हैं अब।
दो पिता, दो मां, सब कुछ पहले से ज़्यादा।
कई रिश्ते हैं, कई जिंदगियां।
सभी अपने हैं-
मां, बाप, भाई, देवर,
सब कुछ अपना है,
सिवाय अपनी ज़िन्दगी के।


तारीख: 05.03.2024                                    विवेक नाथ मिश्रा









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