महानगर
ऐसे लगते ज्यों
जीवन हो जंगल का!
प्रगति देख
असफलता-
मुट्ठी भींचेगी!
लगे ठूंठ को
पावस-
जमकर सींचेगी!!
सप्ताह में
सात दिवस हुए,
आज दिवस मंगल का!
उतरन पहने
शहरों की
अभागे गाँव!
बदले-बदले से
लोगों के
हाव भाव!!
देख रहे
खेल तमाशा
दो बैलों के दंगल का!
कठघरे में
है नेक
खड़ा सफाई देता!
सरेआम कपट
लोगों से
घूस लेता!!
रिश्ता हुआ
मानव का,
अपराधी और संगल का!