प्रेम

तुम हरे हो जाओ,
हरा जैसे कर्नाटक के जंगली पौधे।
सड़क के किनारे खिलो एक फूल की तरह,
बिना परवाह,
तनहा, अकेले, बिना किसी परिचय के।
बिना किसी रोक टोक बढ़ो,
हर दिशाओं में जाओ,
चख लो हर एक स्वाद तुम।
एक कविता बनो,
पर प्रकाशित ना होना।
गुमनाम रहना
एक बच्चे के हृदय में पलना,
जैसे पलता है प्रेम।


तारीख: 05.03.2024                                    विवेक नाथ मिश्रा









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