दिमागी दिवालियेपन की हद है

दिमागी दिवालियेपन की हद है
ख्वाबों में जीने की जो आदत है ।


इमानदारी से मेहनत के बगैर ही
चाह बेशुमार दौलत की बेहद है ।


हश्र पता है सबको अपना मगर
अपनी नज़रों में सब सिकंदर है ।


नंगापन,ओछापन, बदजुबानी ही
शोहरत के लिए अब ज़रूरत है ।


रखकर तहजीबों को ताक पर
करते बुजुर्गो से रोज बगावत है ।


क्या करेगा अजय तू चीख कर
सुनता कौन तेरी यहाँ नसीहत है ।


तारीख: 16.09.2019                                    अजय प्रसाद









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