एक शब जो मैने तेरे बिना गुजारी है

एक शब जो मैने तेरे बिना गुजारी है। 
वक़्त रुक सा गया है, पल पल भारी है। 

जो तेरे मेरे दरमियाँ के फासले हैं। 
ये भी सब तेरी ही कारगुजारी है। 

हम ही खुद के चारागार बने बैठे हैं। 
लेकिन तेरी याद भी बुखार तिजारी है। 

तेरी आदत मुझे कहीं का नही छोड़ती,
चुप हूँ मैं, मेरी भी कुछ लाचारी है। 

ये कदम मैंने मजबूरी में उठाया है,
इश्क़ जालिम कितना अत्याचारी है। 


तारीख: 17.06.2017                                    अर्पित गुप्ता 









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है