एक शब जो मैने तेरे बिना गुजारी है।
वक़्त रुक सा गया है, पल पल भारी है।
जो तेरे मेरे दरमियाँ के फासले हैं।
ये भी सब तेरी ही कारगुजारी है।
हम ही खुद के चारागार बने बैठे हैं।
लेकिन तेरी याद भी बुखार तिजारी है।
तेरी आदत मुझे कहीं का नही छोड़ती,
चुप हूँ मैं, मेरी भी कुछ लाचारी है।
ये कदम मैंने मजबूरी में उठाया है,
इश्क़ जालिम कितना अत्याचारी है।