खता पर खता मैं किए जा रहा हूँ
तुम्हारे बिना ही जिए जा रहा हूँ
वही ज़ख़्म जो तुमने मुझको दिए थे
मुसलसल उन्हें मैं सिए जा रहा हूँ
बुझेगी नहीं प्यास हूँ जानता ये
मगर आँसुओं को पिए जा रहा हूँ
मुहब्बत भी कैसा नशा है खुदाया
मिटाता है लेकिन किए जा रहा हूँ
सुनेगा कभी तो यकीनन मुझे तू
‘पवन’ नाम तेरा लिए जा रहा हूँ