कोई रोज़ सही कोई लम्हा भी ऐसा हो
बादलों में भींगा हुआ सरज़मीं जैसा हो
पानी नाचे झूमके लहलहाते फसलों पे
कैसे पागल होते हैं, फिर शमा वैसा हो
पेड़ों के बदन पर हों सोने की बालिया
पगडंडियों पर बरसता रूपया पैसा हो
नदी गाए गीत कोई, झरने नाचे ताल पे
सोचो फिर ये दिन और ये रात कैसा हो