यूँ पिंजरे में परिंदे सा न छुपा  के रख

gazal shayari musafir

तू अपने फैसलों में मुझे न दबा के रख।
ज़मीं पे बोझ समझ कर न गिरा के रख।

मैं अपनी मंजिल का खुद ही राही हूँ,
मुझे रास्तों की धूल में न मिला के रख।।

मेरे वजूद की रौशनी है खुद में बसी,
मुझे अंधेरों में यूँ न छिपा के रख।।

हैं ज़िंदा मेरी हर एक खुशी और ग़म,
यूँ यादों के संदूक में न सजा के रख।।

मैं अपने ख्वाबों की तलाश में निकला हूँ
तू मेरी राहों में काँटे न बिछा के रख।।

मैं उम्मीदों की बारिश, नई बहार सा हूँ
मुझे घटाओं की तरह न छुपा के रख।।

हैं खुले आसमान में उड़ान की ख्वाहिशें
यूँ पिंजरे में परिंदे सा न छुपा  के रख।।

मैं जो भी हूँ, अपने आप में ज़रूरी हूँ
यूँ दुनिया की नज़रों में न गिरा के रख।।


तारीख: 06.02.2024                                    मुसाफ़िर









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है