आँखों का काजल देखा

आँखों का काजल देखा
उमड़ता सा बादल देखा

तेरी माधुर्य पर नाचता 
मोर मयूरा पागल देखा

तेरी ज़ुल्फ़ों में उलझा 
रात मैंने बेकल देखा

कमर में फँसी हुई
नदी कलकल देखा

पग पग में भागता
हिरण चंचल देखा

तेरी एक हँसी पे
खूब हलचल देखा

ना इससे पहले कहीं
हुस्न का महल देखा


तारीख: 23.08.2019                                                        सलिल सरोज






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