इंसानों के खूंखार चेहरों से डरते हैं अब

gazal shayari

इंसानों के खूंखार चेहरों से डरते हैं अब
जमीन पे फरिश्ते भी कम उतरते हैं अब

उखड़ी सड़कों पर कभी निकलकर देखो
कुत्ते बिल्ली की तरह लोग मरते हैं अब

हमारे मुहल्ले की गलियां तंग क्यों करदीं
तुम्हारे मुहल्ले मे तो फर्राटे भरते हैं अब

ताल तलाब नदियाँ सारे कब के पट गए
देहात के ये जंगल बहुत अखरते हैं अब

प्यासी जमीं कल जो समंदर सोख गई थी
जमीं की परत पर ओंस से उभरते हैं अब


तारीख: 27.01.2024                                    मारूफ आलम









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