तुझको पाने को दिल ये बेताब नही होता

 

तुझको पाने को दिल ये बेताब नही होता
तेरे हांथो में जो लाल गुलाब नहीं होता ।
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तज देता साँसों को अपनी  तुझपे मैं अब तक
ज़िन्दगी का मेरी गर तू असहाब नहीं होता ।
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गर न कभी मिलता मैं जो तुमको इत्तिफ़ाकन 
मोहब्बत में फिर मैं तेरा इंतिखाब नहीं होता ।
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गर तुम न निकलते जुल्फ खोले शहर में तो
शज़र का भी मौसम यूँ खराब नहीं होता ।
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बन गया दस्तूर रिश्तों में यहाँ फरेबों का
बरना मेरे चेहरे पर भी नकाब नहीं होता ।
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जो तू न गुजरती बेपर्दा शहर की बाजार से
तेरे आशिको में  कोई बेनकाब  नही होता ।
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अभी हो भ्रम में सत्य का तुम संज्ञान लो
हर आग का गोला आफताब नहीं होता ।
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हज़ारो ख्वाब आते रातों को याद नही मुझको
वो न जिसमे आये रिशु वो  ख्वाब नही होता ।


तारीख: 16.06.2017                                    ऋषभ शर्मा रिशु









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