हुस्ने अखलाक वफ़ा सब छोड़ के बैठा है
वो अकेला ही सबसे रिश्ते तोड़ के बैठा है
अपने जिगर के उस टुकड़े से पूछूँ तो सही
किस बात पर आखिर मुंह मोड़ के बैठा है
कम उम्र के प्यार का ये कैसा पागलपन है
कफ्स की तिल्लियों से सर फोड़ के बैठा है
जो जिंदा है वो नंगा बैठा है फुटपाथों पर
जो मर गया है वो चादर ओढ़ के बैठा है
पढ़ाई लिखाई, शादी, बच्चे इतना ही तो है
इंसान भी बा कमाल है सब जोड़ के बैठा है