संगदिल दुनियाँ

संगदिल दुनियाँ को हर बात मे झांसा लगता है
एक पत्थर का रोना लोगों को तमाशा लगता है

एक एक बूंद जोड़कर रक्खी है दामन में अपने
ये दरिया भी देखो तो कब का प्यासा लगता है

अक्सर रातों को जो खुआब अधूरा रह जाता है
वो खुआब हमेशा आंखों को बुरा सा लगता है

सबसे पहले फुर्सत से उसको ही उठाओ यारों
जिंदगी का जो पहलू तुमको गिरा सा लगता है

पलट कर जब भी देखा है यादों के सूने रस्ते पर
जिंदगी तेरा सफर हर बार धुंधला सा लगता हैं

मेरी माँ इक तू ही है मेरी जिंदगी की सच्ची मसीहा
तेरे मुहं से निकला हर अल्फाज दुआ सा लगता है
 


तारीख: 12.03.2024                                    मारूफ आलम









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