ख्वाहिशों के पंख जब खुलते हैं, दूर आसमां बुलाता है,
हर तबीयत फिर गुलाबी सी, हर समा दिल को लुभाता है।
उड़ने दो इन पंखों को, ये कहाँ थमने वाले हैं,
जिन्हें छूना है आकाश, वो पर्वतों से कहाँ डरने वाले हैं।
छूना है जो पीर पर्वतों को, वो पंख यहीं परवान चढ़ते हैं,
ख्वाब जो साथ होते हैं, पथरीली राहों में भी वो बढ़ते हैं।
ख्वाहिशों की बारिश में, जब सब कुछ नया सा लगता है,
हर ख्वाब सजीला लगता है, हर पल खुदा सा लगता है।
इन पंखों पर सवार होकर, जब दुनिया से बातें होती हैं,
ख्वाहिशों के पंख तब, अपनी ही धुन में गाते होती हैं।
जब तक बाकी है इनमें जान, ये ख्वाहिशें कहाँ रुकने वाली,
जिनके इरादे हैं फौलादी, उनकी उड़ान कहाँ थकने वाली।