रात की रात से बात होती रही

रात की रात से बात होती रही
दिन शामियाने में बदन धोता रहा

हो गया मुल्क सारा ख़ूनम-खून
और सब नियम-कानून सोता रहा

दूजे की पोशक में जिस्म लपेट के
सरे-शाम अपना वजूद खोता रहा

बच्चे भूखे से बिलबिलाकर मरते रहे
और धर्म पर विचार-विमर्श होता रहा

आज़ादी हर साल आती है,पर कौन आज़ाद है
यही सोच मेरा वतन दिन-रात रोता रहा


तारीख: 27.07.2019                                    सलिल सरोज









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