हमारे घर को अक़्सर वो भी चिंगारी दिखाते हैं।
जिन्हें हम शब के साए में सुबुकसारी दिखाते हैं।।
सिखाते हैं रवादारी वही मजहब की,जो ख़ुद को।
नज़ाकत देख कर मोके पे दीं -दारी दिखाते हैं।।
दिखाई दें सड़क पर घूमते बेख़ौफ़ मुज़रिम,अब।
सिपाही भी फ़कत झूठी गिरफ्तारी दिखाते हैं।।
जमीनों के लिए झगड़ा करें भाई से गर भाई।
उन्हें फिर खेत भी उनके ही, पटवारी दिखाते हैं।।
हमें अनजान से कुछ लोग आकर चापलूसी में।
तरफ़दारी समझदारी वफ़ादारी दिखाते हैं।।
जिन्हें आता नहीं है शायरी अंदाज़ फ़िर भी वो।
क़लम घिसकर ज़माने को कलमकारी दिखाते हैं।।
शब-रात
रवादारी-उदारता
दीं-दारी -धार्मिक
सुबुकसारी- प्रकाश