मुख़्तसर सी बात कहने को जी चाहता है
चाहतें सुन के उनकी मेरा इश्क़ कांपता है
हुस्न है कि जालिम ये खुदा ही जानता है
मुश्किल में धड़कनें हैं वो हिसाब मांगता है
आकर मुझे मिला था मेरा इश्क़ कल को
मैं मर गया गली में ये हर कोई जानता है
ग़ज़लों में लिखा था जो, आसां था दूर से वो
अरे काँटों की बात छोड़ो, दोज़ख ये रास्ता है
ना हिसाब कोई होगा ना रिज़वान से मिलोगे
सब कुछ यहीं ही होगा ये ज़ाहिद भी मानता है