वो दुआ हो तुम

हो सकी न कभी जो कबूल,वो दुआ हो तुम
मेरी गज़लों के  लिए ही सही ,खुदा  हो तुम ।
जब जुदाई में हैं  जिम्मेदार दोनो ही बराबर
किस   मुह से मैं कह दूं कि  बेवफा  हो तुम ।
मुसल्सल मुसीबतों ने मशगूल रक्खा है मुझे
और मेरी जद्दो-जहद के लिए हौसला हो तुम ।
कोशिशें मेरी कामयाबी को तरसती रह गई
जो कभी मिली ही नहीं वो सफलता हो तुम ।
अब तो मौत भी मुझ से कतराने लगी अजय
इस कदर मेरी ज़िंदगी से क्यूँ खफ़ा हो तुम ।


तारीख: 05.03.2024                                    अजय प्रसाद









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