सत्य मेव जयते


 

"सालो यह तो बतादो हम कहां जा रहे हैं? ऐसे कौनसे घोड़े पे सवार हो । कपडे तक बदलने नहीं दिए तुमने। मोबाइल भी घर पर भूल आया हूँ!" अनुराग ने झुंझलाते हुए अपने मित्रों से पूछा। 
"चिंता मत कर, मैंने प्रधान-मंत्री से बात कर ली है । वो अगले एक घंटे तुझे कॉल नहीं करेंगे " आशुतोष ने जोर से ठहाका लगाते हुए कहा ।
"अबे किससे मिलना है, कौन है वह, और क्या वह इतना महत्वपूर्ण है, कि उसे रिसीव करने इतने लोग जा रहे हैं?" अनुराग चिढ़ते हुए बोला
"हां वह ऐसा ही है, हजारों, लाखों में एक "आशुतोष बोला | 
"अरे तू आगे देख यार! एक्सीडेंट करवाएगा क्या" अनुराग ने टोका ।

hini kahani
"यारों का यार है वो, मस्त मौला वह सबसे अलग है।" आशुतोष अपनी ही धुन में बोलता रहा "तू तो हमारे ग्रुप में अभी  शामिल हुआ है, वो हमारा पुराना यार है। एक बार जब उससे  मिल लेगा तब ही उसकी विशेषताओं के बारे में जान पाएगा। 
"यार तुम लोग तो मेरी दिलचस्पी बढ़ाऐ ही जा रहे हो , नाम तो बताओ उसका"
"विक्रम, विक्रमजीत सिंह  पूँछ और कुछ पूँछना है उसके बारे में"
अनुराग ने सोचते हुए कहा " एक मिनट, क्या ये वही विक्रम है जो"
"हाँजी!" विवेक ने अनुराग की बात काटते हुए कहा  
"ओ तेरी! यार इसके बारे में आजकल अखबारों में छप रहा है ! कल के पेपर में तो फ्रंट पेज स्टोरी थी “विलन जो साबित हुआ हीरो। आज से कुछ समय पहले तो उसके समर्थन में जगह-जगह प्रोटेस्ट हुए थे। मैंने भी काले झंडे लहराए थे। शायद सेंट लोरैटो उदय पुर से ही उसने पढ़ाई की थी। है ना ?"

"हां बेटा ! हम उसी की बात कर रहे हैं। हम में से कोई भी ऐसा नहीं है, जो उससे प्रभावित ना हुआ हो या जिसकी किसी न किसी रूप में उसने मदद न की हो । खेलकूद के साथ-साथ वह पढ़ाई लिखाई में भी बहुत होशियार था | जब वह दसवीं में था तो आठवीं तक के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाता था और जब फाइनल में आया, तो दसवीं वालो को ट्यूशन पढ़ाने लगा था। एक वाक्य में उसे “सेल्फ मेड मैन”कहा जा सकता है । हम में से किसी को भी पैसे , बीमारी या अन्य कोई भी दिक्कत होती थी, तो वह मदद करने से पीछे नहीं हटता था ,जी जान से सहायता करता था" आशुतोष ने आगे देखते हुए कहा | गाड़ी अब भीड़भाड़ वाले इलाके से निकल रही थी |

"मुझे एक बात और बताओगे, यह शालिनी कौन थी और उसे जेल क्यों हुई, और विक्रम की सजा माफ करके उसे क्यों रिहा किया गया? मीडिया रिपोर्ट में तो सतही बातो का ही ज़िक्र था" अनुराग की दिलचस्पी बढ़ रही थी। उसके अंदर का बच्चा जैसे जाग रहा था |

"देख भाई ! कोर्ट  केस के बारे में तो सबसे ज्यादा जानकारी विवेक को है| वो ही लोकल कोर्ट और जयपुर हाईकोर्ट आता जाता रहा है, और तुम्हें इसके विषय में सही जानकारी दे सकता है" आशुतोष बोला  

"विवेक प्लीज बताना यार ! मेरी उत्सुकता बढ़ती ही जा रही है"

"ठीक है भाई, जितना मुझे इस विषय में मालूम है उतना मैं तुम सभी को बताता हूं ... विक्रम ने पढ़ाई पूरी करने के बाद एनडीए, आईआईटी आदि की परीक्षाएं दी और वह इन दोनों परीक्षाओं में उत्तीर्ण हो गया। अब उसके सामने प्रश्न था कि वह एनडीए ज्वाइन करें या आईआईटी| हम सभी ने उसे आईआईटी की सलाह दी | लेकिन उसको तो जीवन में कुछ अलग व थ्रिलिंग करना था, और शायद कही देश प्रेम भी भरा है उसमे । इसलिए उसने बिना झिझके एनडीए ज्वाइन की। वहा दिल लगाकर ट्रेनिंग लेने लगा । उनका नंबर १ ट्रेनी बन गया | एक बार बीच में एक हफ्ते के लिए आया था वो | याद है आशुतोष ?" 

"हाँ हाँ | क्या निखार आ गया था साले के व्यक्तित्व में ।" आशुतोष बोला "कद तो उसका 6  फिट के करीब था, गोरा रंग, भरा हुआ कसरती बदन, और उसके ऊपर उसने मुँछे भी रख ली थी। कुल मिलाकर ये मानले अनुराग, की हिंदी पिक्चर के हीरो उसको देखके शरमा जाते ।"

"खैर, उन 7 दिनों में हम विक्रम के साथ ऋषिकेश हरिद्वार देहरादून लक्ष्मण झूला, जयपुर आदि जगहों पर  गए और खूब मनोरंजन किया।" विवेक आगे बोला 

"अरे विवेक, वो जेल कैसे गया ये बता ना यार" अनुराग उत्सुकता से बोला |

"अरे हां, यार आशु तूने बीच में लिंक तोड़ दिया" 
आशुतोष बोला "अरे मेरे सलीम जावेद, विक्रम की ट्रेनिंग ख़त्म हुई और 25 मार्च को उसे ड्यूटी जोईन करनी थी | अब तू आगे बोल"

विवेक ने हंसते हुए कहा "हां तो उस साल 22 तारीख की होली थी । विवेक ड्यूटी ज्वाइन करने से पहले एक बार अपनी मां और हम लोगों से मिलना चाहता था। होली पर शरारती बच्चों द्वारा ट्रेनों पर रंग, कीचड़ पत्थर आदि फेंके जाते हैं, इस कारण ट्रेन लगभग खाली ही चलती है। अतः विक्रम को   ट्रेन में आसानी से जगह मिल गई। एक दो स्टेशन और गुजरने के बाद ट्रेन लगभग खाली हो गई । यहां पर अचानक ट्रेन का एंजिन खराब हो गया। विक्रम नीचे उतर के इधर-उधर घूमता रहा। पूरी ट्रेन में कहीं एकाद सवारी बैठी हुई दिखाई दे रही थी। ट्रेन का इंजन दूसरे स्टेशन से भेजा गया जिसमे काफी समय व्यतीत हो गया और रात  होने लगी ।"

"विक्रम सीट पर बैठ कर मैगजीन देख रहा था, की अचानक कुछ शोर हुआ, और कोरिडोर की तरफ से एक लड़की बदहवास सी दौड़ती हुई आई, उसके कपड़े कुछ जगह से फट रहे थे, विक्रम को देखते ही वह लड़की जोर-जोर से चीखने लगी "प्लीज मुझे बचा लीजिए, प्लीज मुझे बचा लीजिए।" वह आकर विक्रम से लिपटने लगी। विक्रम तुरंत खड़ा हो गया और लड़की को ठीक से बैठाया| लड़की  की सहमी हुई आँखे ,बिखरे हुए बाल बहुत कुछ बयान कर रहे थे | तभी 4 आवारा टाइप लड़के वहां आ गए, जिनमें से दो के पास हॉकी थी, उनमें से एक लड़की की ओर देखके बोला "चल हमारे साथ, आज तुझे नहीं छोड़ेंगे" उसने लड़की का हाथ कस के पकड़ा और अपनी तरफ खींचा, लड़की ने मजबूती से दूसरे हाथ से विक्रम को पकड़ रखा था।विक्रम ने हस्तक्षेप करते हुए कहा "यह क्या बदतमीजी है, छोड़ो इसे, हटो दूर से बात करो।"

""साले तू मर जाएगा आज हमारे हाथों से, हट जा हमारा तेरे से कोई बैर नहीं है।" दूसरे लड़के ने कसकर हॉकी से विक्रम पर वार किया, विक्रम अगर सही मौके पर झुक ना गया होता तो हॉकी  उसके सिर पर लगती । उन लड़कों के दिमाग पर वासना का भूत सवार था| वे जल्दी से जल्दी लड़की को हासिल कर लेना चाहते थे। एक लड़के ने विक्रम पर चाकू से वार किया, दूसरे ने हॉकी से, विक्रम ने पूरी ताकत से उन सभी को जोर का धक्का दिया| विक्रम सीट पर गिर गया, उसके पेट से काफी खून बह रहा था। उसने अपनी जेब से पिस्तौल निकाल ली । लड़कों ने पिस्तौल छीनने के इरादे से विक्रम पर हमला कर दिया।"

"एक मिनट एक मिनट, ये रिवाल्वर विक्रम के पास कैसे आयी | सर्विस रिवाल्वर थी या पर्सनल ?" अनुराग कहानी काटते हुए बोला 
"पूरी कहानी सुनो बेटा। समझ जाओगे|" आशुतोष शैतानी से बोला |

"खैर, वो लड़की को धक्का देते हुए चीखा "तुम भाग जाओ" तब तक लड़के ने कसकर हॉकी से वार किया और दूसरे ने पिस्तौल पकड़ ली और विक्रम से छीननी चाही | उसी पल एक धमाका हुआ, पिस्तौल से गोली चली और लड़के के कंधे में जा लगी, लड़का बेसुध होकर फर्श पर गिर गया। पिस्तौल अभी भी विक्रम के हाथ में थी, जो लड़कों की तरफ तना हुआ था।" विवेक बोला 

"इसके बाद एकदम से अफरा-तफरी मच गई| तीनों लड़के अपने साथी को छोड़कर भाग निकले| लड़की पहले ही जा चुकी थी।"

"विक्रम ने भी वहां से जाने की कोशिश की लेकिन काफी खून निकल जाने के कारण वह सीट से नहीं उठ पाया, और बेहोश हो गया।"

"थोड़ी देर में वह लड़के पुलिस को लेकर आ गए। पुलिस ने विक्रम और वो लड़का जिसे गोली लगी थी, को अस्पताल में भर्ती कराया।"

"यह चारों लड़के बहुत ही प्रभावशाली परिवारों से ताल्लुक रखते थे इनमें से एक जिसे गोली लगी थी उसका नाम धनंजय था"

"हां हां, धनंजय … उसका नाम छपा था अखबार में ! वो तो सत्तारूढ़ दल के मिनिस्टर परमेश्वर दयाल का बेटा था ना" अनुराग काटते हुए बोला |

"हां |" विवेक बोला "इस एक घटना से विक्रम के जीवन में भूचाल सा आ गया। धनंजय और उसके साथियों ने राजनीतिक दबाव डालकर उल्टे विक्रम के खिलाफ एफ आई आर लिखाई । एफ आई आर शालिनी ने लिखवाई थी जिसमें लिखा था की विक्रम शालिनी  को छेड़ रहा था ,धनंजय और उसके साथियों ने शालिनी को बचाने का प्रयास किया, तो विक्रम ने उन  पर गोली चला दी, अगर समय से पुलिस ना आ गई होती तो वह सब को मार देता।"

"विक्रम पर दफा 307 (जान से मारने का प्रयास) व अन्य धाराओं के अंतर्गत मुकदमा चला विक्रम  की कोई बात नहीं सुनी गई और उसको आनन-फानन में 7 साल की सजा सुना दी गई।"

"शालिनी एफ आई आर दर्ज करने के बाद अदालत में भी नहीं आयीऔर विक्रम को जेल हो गई।"

"हे भगवान !" अनुराग के मुँह से अनायास ही ये शब्द निकल गए | वो अचम्भे में था |

"हम्म…" विवेक उसकी मनोदशा को समझते हुए बोला। "विक्रम को लगा कि अब उसका जीवन खत्म हो गया है| लेकिन एक ओर परमात्मा जब सज्जन लोगों की परीक्षा लेता है तो वही उसका निदान भी करता है। एक सुबह जेल में उससे मिलने एक लड़की आई जिसे विक्रम हल्का-हल्का पहचान गया । यह वही लड़की थी जिसके कारण 21 तारीख को ट्रेन में लड़ाई हुई थी | विक्रम ने गुस्से में कहा "अब क्या लेने आई हो मुझसे, शालिनी तुमने मेरा पूरा जीवन बर्बाद कर दिया, चली जाओ यहां से, मैं तुम्हारी सूरत तक नहीं देखना चाहता।""

"वह लड़की काफी गंभीर लग रही थी , उसकी आंखें नम थी, और चेहरे पर शर्मिंदगी। उसने विक्रम को बताया "प्लीज सर एक बार मेरी बात सुन लीजिए, उसके बाद अगर आप कहेंगे तो मैं आपको अपना चेहरा कभी नहीं दिखाऊंगी। मेरा नाम शालिनी नहीं है,  वंदना है । वो एफ आई आर मैंने लिखवाई ही नहीं है | ""
""आपके साथ बहुत भयानक साजिश रची गई है और धोखा दिया गया है ।“ वंदना का स्वर हर शब्द के साथ और ग़मग़ीन होता जा रहा था “ मुझे और मेरे परिवार को धनंजय के पिता ने जान से मारने की धमकी दी और कोर्ट के आसपास भी आने पर अंजाम भुगतने की चेतावनी दी। मैंने घर से निकलने का बहुत प्रयास किया लेकिन मेरे पापा बहुत डर गए थे उन्होंने मुझे घर से नहीं निकलने दिया । लेकिन अब जब परमेश्वर दयाल मिनिस्टर नहीं रहा है और पार्टी से  निकाल दिया गया है, और जब मुझे पता चला कि आप जिसने मेरी जान बचाई, मेरी इज्जत उन गुंडों से बचाई, उसे सजा हो गई है तो मैं अपने आप को रोक नहीं पाई । अब जो भी मेरा अंजाम हो मैं उसके लिए तैयार हूं । आप जैसा कहेंगे वैसा ही करूंगी, मुझे माफ कर दीजिएगा मेरे कारण आपको क्या कुछ नहीं सहना पड़ा ।""

""कोई बात नहीं वंदना, भगवान ने जो मेरे भाग्य में लिखा था शायद वही हुआ हो।“ विक्रम ने वंदना को, या शायद खुद को भी, ढांढस देने के लिए कहा “अब देखता हूं कुछ हो सकता है कि नहीं, बस मेरा एक काम कर दो एक फोन नंबर नोट कर लो । यह मेरे मित्र विवेक का नंबर है उसे फोन करके कहना मुझसे तुरंत आ कर मिल ले ।""

"अगले दिन मैं विक्रम से जाकर मिला तो उसने पूछा "मां कैसी है? उसका ख्याल रखना, तुम लोगों को तो मालूम ही है  कि मुझे इस केस में झूठा फंसाया गया है। हमें इस निर्णय की अपील करनी होगी, तुम एडवोकेट रतन सिंह को जानते हो जो हाई कोर्ट एडवोकेट है, वह हमारे परिचित हैं और रिश्तेदार भी | मेरे हिसाब से अच्छे एडवोकेट है ,उनका निवास उदयपुर में ही है। उनसे जाकर मिल लो और अगर वह इस केस को लड़ना चाहें तो हमारी मीटिंग फिक्स कर दो तुम्हारी बड़ी मेहरबानी होगी।""

"उस समय, इतना कुछ हो जाने पर भी, उसने अपने मन का संतुलन जाने कैसे बना रखा था" विवेक सोचते हुए बोला |

"मैं जाकर एडवोकेट रतन सिंह से मिला और 5 दिन बाद हम विक्रम से मिलने जेल पहुंचे | उन्होंने विक्रम को अपने गले से लगा लिया और बोले "इतना सब हो गया और तूने अब मुझे याद किया है।" थोड़ी देर में वंदना भी आ गयी। एडवोकेट रतन सिंह ने बड़ी बारीकी से केस के हर पहलू को समझा, फिर कुछ सवाल किए । वंदना से पूछा "क्या वह कपड़े जो तुमने उस दिन पहन रखे थे तुम्हारे पास है? अगर हैं तो बिना धोए ही मुझे चाहिए, अगर तुम्हारी ड्रेस पर उन गुंडों का बाल, खून या नाखून कुछ भी मिल गया तो मैं यह साबित कर दूंगा कि उस दिन ट्रेन में तुम्हारे साथ इन्हीं लोगों ने बदसलूकी की थी।""

रतन साहब आगे बोले "ट्रेन का उस दिन का टिकट, और वह फोन कॉल जो तुमने घटना के समय अपने पापा को की थी, उसकी डिटेल्स चाहिए। एक सबसे विशेष बात यह है की तुम लोगों को जलसा ,जलूस करके इसे एक आंदोलन का रूप देना होगा, तभी सरकारी मशीनरी के कान में जूं रेगेगी | वो सब इस केस को जल्दी क्लोज करके वाहवाही बटोर चुके हैं | बिना आंदोलन के हमारी किसी भी सरकारी विभाग में कोई सुनवाई नहीं होने वाली । बस यह समझ लो कि तुम लोगों को इस कांड को जन आंदोलन बनाना होगा।""
""इसका जिम्मा आप मुझपे छोड़ दीजिये सर ! इन राक्षसों का सच सामने लाना ही होगा | और अब मैं किसी से नहीं डरती|" वंदना ढृड़ता से बोली "
"सच में यार इन सब को देखकर ज़िन्दगी जीने की अलग ही हिम्मत मिली मुझे" विवेक बोला 
"रतन सर आगे बोले"विक्रम तुम्हें कुछ करने की आवश्यकता नहीं है। तुम्हारा होमवर्क मैं खुद कर लूंगा। उस दिन जो उन्होंने तुम्हें चाकू मारा है, चोट पहुंचाई है, वह मेडिकल रिपोर्ट में मिल ही जाएगा । कपड़े ,तुम्हारे यहां जमा ही है, पिस्तौल जमा होगी और टिकट का मिलिट्री वारंट होगा ही। अब तुम निश्चिंत हो जाओ, मैं इन लोगों की ऐसी तैसी कर दूंगा । धनंजय के पिता परमेश्वर दयाल अब मिनिस्टर नहीं है। उनके खिलाफ इंक्वायरी बैठी हुई है, और शायद जल्द ही उन्हें जेल की हवा खानी पड़ सकती है और यह भी हमारे पक्ष में जाएगा।""

"हम सब ने एवं वंदना की सहेलियों ने मिलकर सोशल मीडिया के द्वारा लोगों को सच से रूबरू कराया। लोगों को जब इस घिनौनी साजिश का पता चला तो उनका खून खौल गया, और वह जन आंदोलन का हिस्सा बनने लगे। जल्दी ही शहर में पोस्टर लगे, जलूस जलसा होने लगे । पोस्टरों पर लिखा था “वंदना तुम संघर्ष करो हम तुम्हारे साथ हैं”, “विक्रम तुम निर्दोष हो न्याय तुम्हें दिलाना है” “शासन की गुंडागर्दी नहीं चलेगी नहीं चलेगी” “परमेश्वर दयाल मुर्दाबाद मुर्दाबाद”। "

"हाँ हाँ मुझे याद है, ऐसे ही पोस्टर लेकर मैं भी शामिल हुआ था " अनुराग बोला |

"हम्म | छात्र आंदोलन से परेशान  होकर शासन को झुकना पड़ा और आंदोलनकारियों से बात करनी पड़ी। शासन ने इस केस की सत्यता जानने के लिए एक उच्चस्तरीय इंक्वायरी बैठाई, दूसरे वंदना को फ्रैश एफ आई आर दर्ज कराने की अनुमति दे दी, तथा दोनों केसेज़ की एक साथ सुनवाई के लिए जयपुर में एक अदालत का गठन कर दिया।"

"एडवोकेट रतन सिंह, मैंने और वंदना ने जाकर उसी दिन थाने में एफ आई आर दर्ज कराई |"

"सहायक इंस्पेक्टर ने रौब से कहा "दोबारा एफ आई आर दर्ज करनी है।" एडवोकेट रतन सिंह ने उतने ही रौब से जवाब दिया "हां जी दोबारा, पहले झूठी थी, इस बार सच्ची एफ आई आर दर्ज करनी है!" 

“वंदना ने सारी सत्य घटना दर्ज कराई, न ही कुछ उसमें छुपाया न ही कुछ जोड़ा।"”

"वंदना ने हमे बताया की वह आरोपियों में से एक अशोक की बहन को काफी अच्छी तरह से जानती है, शायद उससे बात करने से केस में कुछ मदद मिले।"

"रतन सर ने कहा "हम 50% केस तो एफ आई आर दर्ज कराने से ही जीत चुके हैं । तुम उससे बात करो और कुछ पॉजिटिव निकलता है तो मुझे बताना।""

"एफ आई आर लिखने के 2 दिन केअंदर ही पुलिस ने धनंजय और उसके साथियों को गिरफ्तार कर लिया। केस की पहली सुनवाई पर जज विद्यासागर ने दोनों एफ आई आर को ध्यान से पढ़ा। दोनों एफ आई आर एक दूसरे की विरोधाभासी थी | मुस्कुराते हुए उन्होंने दोनों पक्षों के एडवोकेट को देखा और बोले "इनमें से एक का केस तो बिल्कुल ही झूठा है।""

"एडवोकेट प्रसाद ने सर्वप्रथम विक्रम से कुछ सवाल किए "हां तो मिस्टर विक्रम |आप एनडीए और आईआईटी दोनों में सिलेक्ट हो गए थे तो आपने एन डी ए को क्यों चुना जबकि आपको सभी ने आईआईटी ज्वाइन करने की सलाह दी होगी।""

""जी मैं देश के लिए कुछ करना चाहता था" विक्रम बोला | इस सारे तूफ़ान के बीच वो अब भी उतना ही सभ्य, और संयमित था "


""देश के लिए नहीं मिस्टर विक्रम आप अपनी मारधाड़ की हसरत पूरी करना चाहते थे। क्या यह सही नहीं है की स्कूल के दीनो में आप बहुत लड़ाई झगड़ा करते थे, और इसलिए आपको  बार  बार स्कूल से निकाला जाता रहा है।""
""सर लेकिन गलती कभी भी मेरी नहीं होती थी |जब स्कूल मैनेजमेंट को असलियत का पता चलता था तो मुझे माफ कर दिया जाता था।""

"एडवोकेट प्रसाद ने सख्त लहजे में पूछा "घटना वाले दिन जब धनंजय और उसके साथियों ने आपको लड़की छेड़ने को मना किया तो आपने पिस्तौल निकालकर उन पर फायरिंग करनी शुरू कर दी।"

"विक्रम ने जज साहब और अपने वकील की तरफ देखते हुए कहा "सर यह बिल्कुल झूठ है । घटना से पहले तक मैं इनमें से किसी को जानता तक नहीं था, शालिनी को तो मैंने आज तक नहीं देखा । पता नहीं, उसकी मुझ से क्या दुश्मनी है जो उसने मेरे खिलाफ झूठी एफ आई आर लिखवाई ।""

"एडवोकेट प्रसाद ने विक्रम को धमकाते हुए कहा "आप जज नहीं है जो झूठी एफ आई आर कह रहे हैं, अच्छा यह बताइए कि सेना ने आपको पिस्तौल देश के दुश्मनों पर चलाने के लिए दी है या देश के भोले भाले नागरिकों पर चलाने के लिए दी है।""

"भोले भाले नागरिक??" विक्रम ने कुछ कहना चाहा , पर बीच में ही एडवोकेट प्रसाद उसे डांटते हुए बोले "आप मेरे सवाल का उत्तर हां या ना में दीजिए, सेना ने पिस्तौल दुश्मनों पर चलाने के लिए दी है या नागरिकों को मारने के लिए दी है।"

"एडवोकेट रतन सिंह ने हस्तक्षेप करते हुए कहा "योर ऑनर यह तो विक्रम को बोलने ही नहीं दे रहे।""

"जज साहब ने कहा - - मिस्टर प्रसाद आप तो बहुत सीनियर एडवोकेट है, बोलने दीजिए ना आरोपी को पहले इसकी पूरी बात सुन लीजिए फिर हस्तक्षेप कीजिए।""

"विक्रम ने बताया "घटना वाले दिन इन लोगों का व्यवहार दुश्मनों जैसा ही था | यह सब मुझ पर टूट पड़े थे। कोई हॉकी से मार रहा था कोई चाकू से वार कर रहा था, मैं अकेला फंस गया था | अगर पिस्तौल ना निकलता तो यह लोग मुझे मार डालते, पिस्तौल तो मैंने अपनी आत्मरक्षा में निकाला था।""

"इसके बाद एडवोकेट प्रसाद विशेष प्रभावकारी जीरह नहीं कर पाए।"

"वंदना ने बिल्कुल सच्चे बयान दिए एक भी जगह घबराई नहीं रुकी नहीं।"

"धनंजय के वकील ने वंदना से पूछा "घटना के इतने दिनों बाद आपका हृदय परिवर्तन कैसे हुआ, इतने दिनों आप कहां छुपी रही।""

वंदना ने बिना डरे बिंदास बताया "धनंजय के पापा ने गुंडे भेज कर हम लोगों को डराया धमकाया , लेकिन जब मैं नहीं मानी तो वह खुद गुंडे लेकर हमारे घर आ गया , मेरे पापा मम्मी भाई और मुझे जान से मारने की धमकी दी, मेरे घरवाले बहुत डर गए और उन्होंने मेरा घर से बाहर निकलना बंद कर दिया। जब तक केस का फैसला धनंजय के पक्ष में नहीं हो गया इनके आदमी हमारे घर के आसपास मंडराते रहते थे।""

"धनंजय के वकील प्रसाद ने  कहा "क्यों झूठ बोल रही है आप।  क्या आपके पास इस बात का एक भी सबूत है कि किसी ने आपको धमकाया।""

"इस पृश्न का उतर रतन सिंह ने देते हुए कहा "सबूत हैं वकील साहब, और एक नहीं काफी सारे हैं । मैंने वंदना के भाई का मोबाइल  अदालत में दाखिल कर रखा है, मेरी प्रार्थना है जज साहब स्वयं भी देखें और मेरे काबिल दोस्त को भी दिखाएं।""

"वीडियो देखकर एडवोकेट प्रसाद के होश उड़ गए। एक वीडियो में स्वयं परमेश्वर दयाल वंदना के पापा को गंदी गंदी गालियां दे रहा था, और कह रहा था अगर वंदना कचहरी के आसपास भी गई तो उसे जान से मार दिया जाएगा।""

"इसके बाद बहुत सी तारीख पड़ी लेकिन एडवोकेट प्रसाद ना हीं शालिनी को पेश कर पाए , नाहीं किसी अन्य को, उनकी तमाम दलीलें इतनी कमजोर साबित हुई कि वह स्वयं हंसी का पात्र बन गए।"

"इसके विपरीत एडवोकेट रतन सिंह ने केस को बहुत अच्छी तरह से प्रस्तुत किया, वंदना की ड्रेस पर मिले बाल और खून के धब्बों से यह साबित हो गया की खून के धब्बे धनंजय के ही है और21 तारीख को वंदना के साथ यह घटना घटी थी।"
"जज साहब ने एडवोकेट प्रसाद से पूछा "क्या आपको कोई अन्य गवाह पेश नहीं करना, शालिनी जिसने एफ आई आर लिखाई थी उसे क्यूँ नहीं पेश कर रहे हैं आप । क्या यह माना जाए की शालिनी ने झूठी एफआईआर लिखाई थी।"

"एडवोकेट प्रसाद बुरी तरह से बौखला गए "नहीं जज साहब ऐसी बात नहीं है | मुझे लगता है उसे आरोपी विक्रम के दोस्तों ने किडनैप कर रखा है | ठीक वैसे जैसे वंदना जी कह रही थी की उन्हें कर रखा था| शालिनी गरीब लड़की है जज साहब | क्या करेगी बेचारी | ऐसे मुकद्दमों में संदेह का लाभ लड़की को मिलना चाहिए |""

"इन दलीलों से जज साहब भी सोच में पड़ गए थे शायद | "मामला नाजुक है" वो बोले | "अगर ये शालिनी नामक लड़की है तो विक्रम भी दोषी हो सकता है | सही आदमी को बरी करने से ज्यादा जरूरी है गलत आदमी को बरी ना करना| एडवोकेट प्रसाद को 5 दिन की मोहलत दी जाती है । अगर वो शालिनी को प्रस्तुत कर पाए तो आरोपी की सजा बरक़रार रहेगी" । 

"5 दिन में तो ये किसी भी शालिनी को पकड़ के दिखा देंगे" रतन सर धीरे से मुझसे बोले | इस पल मैंने विक्रम की आँखों में पहली बार हार देखी |"

"अचानक एक आवाज़ आई "जज साहब मुझे कुछ कहना है।""

"पूरी अदालत में सन्नाटा छा गया | ये चौथे आरोपी अशोक की आवाज़ थी | दोनों पक्ष उलझन में पड़ गए| रतन सर भी घबरा गए | पता नहीं ये कौनसी नयी दलील रखदे|"

" उन्होंने वंदना के कान में धीरे से पूछा "क्या तुम्हारी अशोक की बहन से बात हुई थी।""

""सर समय ही नहीं मिला बस एक बार औपचारिक बात हुई थी""

असमंजस की स्थिति दोनों पक्षों में थी की अशोक किसके पक्ष में क्या कहने वाला है।  रहस्य ज्यादा देर तक बना नहीं रह सका,धनंजय केस के चौथे आरोपी अशोक ने कहा की 21 तारीख को धनंजय और उसके साथियों ने, जिसमें वो भी शामिल था, वंदना के साथ जबरदस्ती करने का प्रयास किया था, धनंजय ने विक्रम पर चाकू से हमला किया था, विक्रम की पिस्तौल से छीना झपटी में गोली चल गई थी | अशोक ने यह भी बताया की शालिनी धनंजय की मित्र है और धनंजय के कहने पर ही उसने एफ आई आर दर्ज कराई थी | अशोक के बयान से पूरा केस विक्रम के पक्ष में आ गया था, हम सबने राहत की सांस ली, सबके चेहरे पर जीत की मुस्कुराहट थी।"

"एडवोकेट प्रसाद ने जज साहब से  कहा "अशोक का बयान न पढ़ा जाए यह  बागी हो गया है।""

"जज साहब ने अशोक से पूछा "तुम्हें पता है तुम क्या बयान दे रहे हो, तुम्हें भी सजा होगी, तुम पर किसी तरह का दबाव तो नहीं है।""

"अशोक ने जवाब दिया "हां सर मेरे ऊपर मेरे ज़मीर का दबाव है, मुझ पर दबाव है मेरी बहन का जिसके एक वाक्य ने मेरी आत्मा को झकझोर दिया। उसने मुझसे कहा “ भैया अगर वंदना की जगह पर मैं होती - - - - तो क्या करते ?" मुझे अब कोई डर नहीं है साहब| जो सजा भी मुझे मिलेगी उसको मैं हंसते हंसते पूरा करूंगा और भविष्य में अच्छा बनने का प्रयास करूंगा।""

"एडवोकेट रतन सिंह ने कहा "योर ऑनर अशोक के बयान के बाद मैं किसी और दलील या गवाह को पेश नहीं करना चाहता । यह भली-भांति साबित हो चुका है की किस तरह धनंजय ने अपने पापा के रसूख का फायदा उठाकर एक भले और जागरूक देश के सैनिक के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया है, आपसी सांठगांठ और रसूक का फायदा उठाकर प्रशासन और न्याय व्यवस्था को बदनाम करने का प्रयास  किया है।""

"न्यायधीश विद्यासागर ने फैसला विक्रम के पक्ष में सुनाया। जिस की प्रमुख बिंदु यह थे - - - धनंजय और उसके दो साथियों को 10 साल की सजा, शालिनी और अशोक को 6 महीने की सजा, विक्रम को बाइज्जत बरी किया, साथ ही फैसले में लिखा नारी के प्रति उनकी कर्तव्यनिष्ठा, हौसला  व  अदम्यसाहस, अतुलनीय है, जिससे आज की युवा पीढ़ी को प्रेरणा लेनी चाहिए।"

कहानी ख़त्म करते हुए विवेक ने अनुराग से कहा "यह है विक्रमजीत सिंह की अब तक की कहानी या कह लो आप बीती । हम लोग उसका ही स्वागत करने जा रहे हैं | वह 10:00 बजे की ट्रेन से आने वाला है।"

स्टेशन पर कल्पना से भी अधिक भीड़ थी । कई संगठन अपने बैनर्स, पोस्टर्स के साथ वहां उपस्थित थे विवेक ने कहा "देखा अपने हीरो के स्वागत में कितने लोग उपस्थित हैं।"

उधर जेल से बाहर आकर विक्रम को एक अनूठा आनंद प्राप्त हुआ, उसका मन नाचने और गाने को करने लगा। वह पास ही के एक पार्क में गया और शोर मचा कर खूब भड़ास निकाली ।

बादमे समय से आकर उदयपुर की ट्रेन में बैठ गया। थोड़ी देर बाद उसके सामने की सीट पर एक महिला अपनी बेटी के साथ आकर बैठ गई । महिला और बेटी दोनों फैशनेबल  सभ्य एवं रईस लग रही थी।

विक्रम ने महिला को नमस्कार किया और पूछा "उदयपुर जा रही है?"

महिला ने कहा "जी हां और शिष्टाचार-वश उसके हाथ में एक बिस्किट का पैकेट था जो विक्रम की तरफ बढ़ा कर कहा "आप भी लीजिए।"

विक्रम ने बिस्किट लेते हुए कहा धन्यवाद "यह आपकी बिटिया है, अभी पढ़ रही है या जॉब में है।"

इसका जवाब लड़की ने देते हुए कहा "जी हां फाइनल्स में ।"

"फाइनल के बाद क्या करेंगी जॉब या मैरिज , वैसे उम्र तो आपकी ठीक ठाक ही लग रही है ,नाम क्या बताया आपने।"

यह प्रश्न बेटी को अच्छा नहीं लगा और उसने थोड़ा सख्त लहजे में कहा "आप जॉब दिलवाते हैं या मैट्रिमोनी साइट चलाते हैं।"

विक्रम ने हंसते हुए कहा "नाइस सेंस ऑफ ह्यूमर , अच्छा कटेगा आप लोग के साथ रास्ता। मैं अभी 2 मिनट में आता हूं।"

उसके जाते ही मां ने बेटी से कहा "चांदनी इसे ज्यादा लिफ्ट देने की जरूरत नहीं है, कुछ ज्यादा ही तेजी दिखा रहा है।"

2 मिनट बाद ही विक्रम वापस आ गया लेकिन उसने देखा मां बेटी का मूड कुछ उखड़ा उखड़ा था। विक्रम ने एक आद सवाल किए लेकिन उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया| विक्रम ने छेड़ते हुए पूछा "क्यों कुछ हुआ है क्या, आप लोगों का मूड कुछ उखड़ा उखड़ा सा है।  कोल्डड्रिंक लीजिए आप लोग का मूड अच्छा हो जाएगा।"
माँ ने थोड़ा सख्त लहजे में कहा "नो थैंक्स, आप अपनी जगह बैठिए और ज्यादा घुलने मिलने का प्रयास नहीं कीजिये।"

उसी वक्त पर्दा हटा कर एक सज्जन अंदर आए और विक्रम को देखते हुए आश्चर्य में पड़ते हुए कहा "अरे विक्रम कब रिहा हुए जेल से, तुम पर तो मर्डर का चार्ज है ना।"

यह सुनते ही मां बेटी बहुत घबरा गई | सौभाग्य से उसी समय  टीटी महोदय आ गए और टिकट चेक करने लगे, मां ने टीटी से धीरे से कहा "प्लीज हमारी सीटें चेंज कर दीजिए।"

टीटी ने पूछा "क्यों, यहां क्या परेशानी है ।"

मां ने विक्रम की तरफ  हल्का सा इशारा करते हुए कहां "इस पर मर्डर का चार्ज है , जेल से पैरोल पर छूटा है।"
टीटी ने आश्चर्य जताते हुए कहा "क्या बात कर रही हैं आप, इन पर और मर्डर का चार्ज | अरे यह तो सेना के अधिकारी हैं , विक्रमजीत सिंह। आज के सभी न्यूज़ पेपर में इनका मुख्य पृष्ठ पर फोटो और समाचार है, टीवी चैनल पर भी न्यूज़ आ रही है लगता हैआप लोग टीवी या न्यूज़पेपर नहीं पढते।"

"अच्छा यह वह है, इनके बारे में न्यूज़ तो मैंने भी पढी  है पर पेपर के फोटो और रियल में काफी फर्क होता है, इसलिए हमने पहचाना  नहीं- सॉरी।" लेकिन  मां कुछ शर्मिंदा सी हो गई थी।

टीटी के जाने के बाद विक्रम ने माफी मांगते हुए कहा "सॉरी आंटी मेरा पिछला कुछ समय बड़ा खराब रहा है , या यूँ कहिए मेरे जीवन के सबसे काले दिन थे । मैं जीवन से तंग आ गया था, बिल्कुल कंटाल गया था( डिप्रेशन में चला गया था)। थोड़ा मस्ती करने का मूड किया इसलिए आप लोगों से थोड़ी मस्ती की, लेकिन टीटी  ने पोल खोल दी।  आप लोग मुझे माफ कर दीजिए।"

मां ने कहा "नहीं माफी तो हमें मांगनी चाहिए, हमने आपको गलत समझा।"

"मेरी शकल ही ऐसी है आंटी अक्सर लोग बाग धोखा खा जाते हैं, खैर चलिए माफ कर दिया हो तो कोल्ड ड्रिंक पी लीजिए बेचारी रखे रखे गर्म हो रही है।"

उसके बाद तीनों ने खूब मस्ती की कब मंजिल आ गई पता ही नहीं चला।


विक्रम अपने स्वागत से अभिभूत हो गया। स्टेशन पर पैर टिकाने की जगह भी नहीं बची थी । न जाने कितनी मालाएं उसके गले में पड़ी। लोगों का उसके प्रति उत्साह देखते ही बनता था। न्यूज़पेपर और कुछ चैनल वाले भी वहां कवरेज कर रहे थे। 
विक्रम ने उन्हें कहा "मुझे तो आशा ही नहीं दिख रही थी कि मैं रिहा हो जाऊंगा | यह सब तो प्रैस , स्कूल के मेरे मित्र गण और जनता के अपार आशीर्वाद के कारण ही संभव हो सका है । एक बहुत बड़ी गिरेह थी मुझ पर जो टल गई। मैं इस जीवन में आप सबका कर्जा कभी भी नहीं चुका पाऊंगा।"

आशुतोष, विवेक, अनुराग और उसके अन्य साथियों ने विक्रम को अपने कंधो पर बैठा लिया और जुलूस के साथ स्टेशन से बाहर निकले।
 


तारीख: 14.02.2024                                    विजय हरित









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है