शिव दौड़ते हुए इलाहाबाद रेलवे स्टेशन के अंदर प्रवेश हुआ। प्लेटफार्म संख्या १ के पहले वाले हॉल में भीड़ काफ़ी ज़्यादा थी, लोग फ़र्श पर आराम की मुद्रा में अपनी-अपनी देरी से आने वाली गाड़ियों का इंतज़ार कर रहे थे। कुछ लेटे थे, कुछ बैठे हुए थे, वहीँ कुछ लोग अंदर से बाहर की ओर आ-जाकर सुन्दर कन्याओं को अपने प्रेमपूर्ण और कुछ दरिंदगीपूर्ण नज़रों से निहार रहे थे। शिव हांफता हुआ प्रतीक्षा कक्ष में प्रवेश हुआ और एक ‘एटीएमाकार’ मशीन के पास जाकर रूका। जहां पहले से कुछ लोग मौजूद थे और बार-बार अपने माथे का पसीना पोंछ रहे थे। शिव ने एक भाई साहब से हांफते हुए विनम्रता से पूछा “काम नहीं कर रहा है क्या ?” भाई साहब इशारें में ही कुछ अस्पष्ट सा जवाब देते हुए आगे निकल गये। वह आगे बढ़कर मशीन के पास गया, मशीन के स्क्रीन पर अंगुलियों से कुछ किया और फिर अपना पी0 एन0 आर0 नं0 उसमें अंकित करते हुए गेट स्टेटस को क्लिक किया, तभी मशीन को लकवा मारा और मशीन वहीं की वहीं अटक गयी।
वह निराशा के साथ दौड़ते हुए प्लेटफार्म एक पर पहुंचा। वेटिंग चार्ट चिपक चुका था। वह आगे पहुंचकर शिवगंगा एक्सप्रेस के शयनयान सूची में अपना नाम ढूंढ़ने लगा, देखते-देखते नीचे से कुछ ऊपर उसका नाम मिला। उसके चेहरे पर एक चमक सी आयी परन्तु तत्काल ही वह चमक पुनः एक निराशा में बदल गयी। सीट कन्फर्म नहीं हुई थी। तिरालिस से अट्ठारह वेटिंग पर आकर अटक गयी थी। शिव को दिल्ली तक जाना था, बगैर कन्फर्म सीट के थोड़ी-सी परेशानी का डर हुआ। मगर समन्वय कुशल व्यक्ति होने के नाते, भविष्य के हालात का सामना करने को तैयार हो गया। गाड़ी आने में अभी बीस मिनट बाक़ी था। उसने सोचा कि जाकर थोड़ा हल्का हो ले। सो प्लेटफॉर्म से बाहर बने पेशाबघर में पहुंच गया। उस घर के अंदर नर्क का जीता जागता नमूना मौजूद था। किसी महाशय ने मल त्यागकर उसमें पानी भी नहीं डाला था, और बिल्कुल ही बगल में एक श्रीमती जी अपने अवोध शिशु को मल त्याग करवा रहीं थीं। कमाल की बात है कि वह घर शौचालय नहीं पेशाब घर था। शिव ने रूमाल से नाक बंद करके आंख़ को अलग दिशा में केन्द्रित किया और बड़े ही साहस के साथ मूत्र त्याग करके बाहर आया।
गाड़ी खटर-पटर आकर प्लेटफॉर्म पर रूकी। शिव वेटिंग टिकट के साथ शयनयान कक्ष में चढ़ गया। कम्पार्टमेंट में इधर-उधर चहलकदमी करने के बाद, एक लोअर बर्थ पर बैठ गया। अभी गाड़ी स्टेशन पर ही रूकी थी।
गाड़ी धीरे-धीरे प्लेटफॉर्म से बाहर होने लगी, कुछ लोग खाना-खा रहे थे, कुछ लोग खा चुके थे और कुछ लोग अपने-अपने बर्थ पर लेटने वाले थे। शिव चुपचाप उठकर दरवाज़े की तरफ़ गया। एक बंद दरवाजे के पास अख़बार विचाकर बैठ गया। दरवाज़े में लगी खिड़की का शीशा टूटा हुआ था। आसमान साफ़-साफ़ दिखाई दे रहा था। उजाली रात, साफ़ आसमान, गाड़ी की तेज़ रफ्तार एवं आसमान में चाँद का साथ-साथ चलना, उसके मिजाज को रूमानी कर रहा था। कुछ देर में टी टी ई0 महोदय का प्रवेश हुआ। महोदय ने शिव से टिकट पूंछा, जांच करने के बाद शिव को यहां न बैठने की हिदायत देते हुए अंदर चले गये। शिव ने भी अजीब सा मुंह बनाते हुए अख़बार समेटा और अंदर ही दो लोअर बर्थ की सीट के बीच वाली फ़र्श पर सोने के लिए गया। वह जिस सीट के पास फर्श पर लेटा, वहां दोनों सीटों में से एक पर, अधेड़ उम्र की एक औरत थी और दूसरे सामने वाली पर अधेड़ उम्र का एक पुरूष लेटा हुआ था। पुरूष के उपर मिडिल बर्थ और उसके ऊपर अपर बर्थ था। जिस पर एक सुंदर युवती लेटी हुई थी।
जैसे ही शिव वहां लेटा, अधेड़ उम्र की औरत ने मुंह बनाते हुए, उसे वहां लेटने से मना कर दिया। पूंछने पर एक घटिया-सी दलील में कहने लगी “आप कहीं और लेटिए न, जहां पुरूष ही हों, हम महिला हैं, न जाने कब कैसी अवस्था में रहें। आप जाइये यहां से”। इस घटिया दलील को सुनते ही, शिव तुनककर बोला “आपको अपनी अवस्था का ख्याल स्वयं रखना चाहिए और फिर आपको इन पुरूषों से कोई परेशानी नहीं है, जो इस केविन के बर्थ पर हैं, आपको अपनी अवस्था के देख लेने का डर सिर्फ फ़र्श पर लेटे हुए मुझ बीस साल के लड़के से ही है?” उसने अपना अख़बार एक बार फिर समेट लिया। वह वापस दरवाज़े की तरफ़ जाने लगा। तभी ऊपर लेटी हुई सुन्दर युवती ने उसे रोका और अपनी सीट पर बैठने का आग्रह किया। शिव ने एक बार उसे देखा। चेहरे पर कृतज्ञता का भाव लिए आग्रह स्वीकार किया। अब तक गाड़ी कानपुर सेंट्रल पहुँच चुकी थी। शिव ने युवती से कहा ‘‘कोल्डड्रिंक लेकर आता हूं फिर बैठता हूं”।
शिव युवती के साथ उसके बर्थ पर बैठ गया। उसने कोल्डड्रिंक बढ़ाते हुए औपचारिकता की। युवती ने बड़ी ही सज्जनता से मना कर दिया और अपने बर्थ पर किनारे खिसक कर मोबाइल फोन में कुछ करने लगी। शिव थोड़ा अन्यमनस्क भाव से कोल्डड्रिंक पीता रहा और बीच-बीच में उसके तरफ़ भी देख लेता था। गाड़ी बहुत तेज़ रफ्तार से दिल्ली को छूने को बेताब थी। रात पूरे शबाब पर थी। कम्पार्टमेंट के लगभग लोग बत्तियां बुझा कर सो चुके थे। शिव के मन में एक अनजाना सा एहसास उत्पन्न हो रहा था। वो कोई राग था या कवित्त, वह पहचान नहीं सका। ऐसा नहीं था कि कभी उसने किसी लड़की के साथ रात नहीं बितायी थी पर ऐसा ह्रदय से आनन्द उत्पन्न कभी हुआ ही नहीं था। वह इन्हीं ख्यालों में डूबा हुआ था कि युवती ने कहा ‘‘आप थोड़ा किनारे खिसककर बैठ जाइये, मैं अब सोना चाहती हूं.............. ।”
युवती उसके तरफ़ पाँव करके लेट गयी। मानव मन बड़ा चंचल होता है। ख़ासकर तब जब एक ही सीट पर दो विपरीत लिंग के नौजवान बैठे हों। युवती का पाँव, उसके पाँव में छूने से मात्र एक अंगुल बचा रह गया था। शिव उसके पाँव को बड़ी गहन दृष्टि से देख रहा था। सुन्दर गेहुंआ रंग महसूस करने में कोमल भी होगा। शिव थोड़ा-सा हिल-डुल कर अपने पाँव को उसके पाँव में स्पर्श होने देना चाहता था। युवती सोने लगी, काफ़ी कस्मकश के बाद वह अपने इरादे में सफल हुआ। उसका पाँव युवती के पाँव से स्पर्श हो गया। शिव का मन मगन हो गया। तेज़ रफ़्तार से दौड़ती हुयी गाड़ी से भी तेज़ उसका मन दौड़ने लगा। अधिकांशतः ऐसी नवीन उम्र के लोगों में एक विरोधाभासी स्वाभाव पाया जाता है कि ये अतिप्रेमी ह्रदय के होते हैं, जैसे ही कहीं कोई सुन्दर कन्या दिखती है, इनके प्रेम की लहरें हिलोरे मारने लगती हैं। फिर भी इस उम्र के लोग लड़ाई जैसे अपराध में ज्यादा संलिप्त पाये जाते हैं। अब शिव सोती हुई युवती के चेहरे को देख रहा था, जो चमकते हुए भी अंधेरा होने के कारण अस्पष्ट था। सोचते-सोचते उसे अचानक एक डर का अनुभव हुआ “कहीं मैं चरित्रहीनता की ओर तो नहीं बढ़ रहा हूँ और मेरे चेहरे से ऐसा दिखता हो! इसीलिए आंटी ने मुझे वहां बैठने से मना किया हो !........... अरे नहीं ! मैं जानता हूँ, मैं ऐसा नहीं हूँ।”
दौड़ते-दौड़ते गाड़ी गाजियाबाद पहुंच चुकी थी। सुबह तड़के का पहर था। युवती को नींद बहुत गहरी आ रही थी। अमूमन इस पहर नींद गहरी आती ही है। वह उठ बैठी, शिव अचानक सहम गया। युवती कुछ पल चेहरे पर अजीब सा भाव लेकर इधर-उधर देखती रही। उसकी आंखे भी टिपटिपा रही थीं। खुलती बंद होती आंखो को देख कर शिव आनन्दित हो उठा। वह साक्षात सुंदरता की प्रतिमूर्ति को देखकर आनन्द विभोर हो रहा था। युवती सहसा मुड़कर फिर लेट गयी और अब उसका सिर, पालथी अवस्था में बैठे हुए शिव के पैरों से सटा हुआ था। शिव को एक अलग तरह के आनन्द की अनुभूति हो रही थी। जिसमें कामुकता थी या नहीं ? कहना मुश्किल है परन्तु शिव का ह्रदय उसे प्रेम की प्रबलता ही समझ रहा था। शिव के इलाहाबाद से दिल्ली की यात्रा के दौरान, उसके ह्रदय में आज कुछ ऐसा उत्पन्न हो रहा था, जो इससे पहले उसके साथ कभी नहीं हुआ था।
गाड़ी दिल्ली में प्रवेश कर चुकी थी। अचानक युवती फिर उठी, उसने शिव को देखा और शर्माते हुए अपने नींदपूर्ण बेहोशी पर मुस्कराते हुए अपनी सीट पर किनारे खिसककर बैठ गयी। शिव ने कहा गाड़ी नई दिल्ली पहुंचने वाली है। युवती के चेहरे पर भी स्वीकृति का भाव दिखा। गाड़ी नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर आकर खड़ी हो गयी। सभी यात्री उतरने लगे। वे भी उतरे। वह बिना किसी औपचारिकता किये अजमेरी गेट की तरफ़ जाने वाले रास्ते पर चल पड़ी। शिव इस प्रेम मूर्ति को देखता रहा। उसका ध्यान टूटा जब किसी ने बगल हटने का आग्रह किया। वह हटा, फिर अचानक दौड़ते हुए उस रास्ते पर गया। परन्तु युवती कहीं दिखायी न दी। वो अपनी इस बेवकूफी पर मुस्कराया फिर घर के लिए निकल पड़ा ।
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शिव का सबसे ख़ास और पुराना मित्र आज अपने कम्पनी के काम से दिल्ली आ रहा था। स्टेशन पर खड़े होकर शिव भीड़ को आते जाते देख रहा था। लेकिन उसका मित्र जॉली कहीं दिखाई नहीं पड़ा। उसने अपने जेब से फ़ोन निकाला कि कॉल करे उसे। तभी सामने से जॉली झूमता हुआ आता दिखाई दिया। दोनों ने....................
शेष भाग - २ में।