आसमान जो सदा बुलंदी का दम भरता है
कभी-कभी वो भी जमीं पर उतरता है
मलबे का ढ़ेर लग जाता है दिल के फलक पर
जब वहां कोई ख़्वाब टूटकर बिखरता है
वो खुशी से मरे जा रहे हैं मेरी बर्बादी पर
आजकल यहां किसी के गम में कौन मरता है
शराबों का खुमार जियादा देर न रहता हो मगर
शोख़ नज़रों के दीदार का नशा कब उतरता है
रहमत दुनियां में बहुत कम बची है 'नामचीन'
अपनी बेदर्दी से तू इसे क्यों और कम करता है