बूढ़े पेड़ का दुख

छांव में जिसकी खेले बचपन,

जिसकी छाया में बीते जीवन,

आज वही पेड़ खड़ा अकेला,

बता रहा है अपना मन का ग़म।

 

टहनी-टहनी बिखरी स्मृति,

पत्तों में छुपी हैं कहानियाँ कितनी।

कभी था वह गाँव की शान,

अब अनदेखा, जैसे अनजान।

 

जड़ें कहती हैं, “मैंने सींचा,

हर धूप-छांव में तुमको सीखा।

फिर क्यों आज तुम भूल गए,

मुझसे मुँह मोड़ दूर हो गए?”

 

न खेलते अब बच्चे झूले,

न कोई थक कर आ बैठता है।

कभी जिस तने से लगते थे दिल,

अब उसी पे कुल्हाड़ी चलती है।

 

कहता है पेड़ —

"मैं बूढ़ा हूँ, पर जीवित हूँ,

हर पत्ता अब भी कविता लिखता है।

मुझे मत काटो, मत ठुकराओ,

मैं तुम्हारे कल के लिए जीता हूँ।"


तारीख: 22.04.2025                                    डॉ मुल्ला आदम अली




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