अपनी गलती पे बीबी ,
कितना गुस्सा करती है
फूलकर कुप्पा होकर,
कौने में ही बैठा करती है ।
जानें कितनीं मिन्नत करवा के,
खुद ही हसती है
अपनें आँसू दिखा - दिखा के,
भली सी बनती है ।
हाँथ जुड़वा कर पैर पड़वा के,
कहाँ वो मनती है
अपने कामों को करवा के,
कुछ देर में सजती है ।
अपने जलवे दिखा- दिखा के,
मनमानी सी करती है
खुवाइसों की लिस्ट बना के,
पति के हांथों थमती है ।
ग्रहस्ती अपनी बचाने को,
जान बचानीं पड़ती है
आँखें मल -मल के भी तो,
हँसी हसनीं पड़ती है ।
मान गलती अपनीं ही,
हांमी तो भरनी पड़ती है
कान पकड़ के उठा बैठक भी,
करनी पड़ती है ।
तब जाकर कहीं- कभी,
बीबी, बीबी सी दिखती है
वर्ना घर की हालत तो,
कुरुछेत्र सी ही लगती है ।
नाप-तौल के बीबी के आगे,
शब्दों की झड़ी लगानी पड़ती है
गृहस्ती खुद की बचानी हो ,
ऐसे ही पापड़ बेलनी पड़ती है ।