गृहस्ती के पापड़            

 

अपनी गलती पे बीबी , 
कितना गुस्सा करती है
फूलकर कुप्पा होकर, 
कौने में ही बैठा करती है ।


जानें कितनीं मिन्नत करवा के, 
खुद ही हसती है
अपनें आँसू दिखा - दिखा के, 
भली सी बनती है ।


हाँथ जुड़वा कर पैर पड़वा के, 
कहाँ वो मनती है
अपने कामों को करवा के, 
कुछ देर में सजती है ।


अपने जलवे दिखा- दिखा के, 
मनमानी सी करती है
खुवाइसों की लिस्ट बना के, 
पति के हांथों थमती है ।


ग्रहस्ती अपनी बचाने को, 
जान बचानीं पड़ती है
आँखें मल -मल के भी तो,  
हँसी हसनीं पड़ती है ।


मान गलती अपनीं ही, 
हांमी तो भरनी पड़ती है
कान पकड़ के उठा बैठक भी, 
करनी पड़ती है ।


तब जाकर कहीं- कभी, 
बीबी, बीबी सी दिखती है
वर्ना घर की हालत तो, 
कुरुछेत्र सी ही लगती है ।


नाप-तौल के बीबी के आगे, 
शब्दों की झड़ी लगानी पड़ती है
गृहस्ती खुद की बचानी हो ,
ऐसे ही पापड़ बेलनी पड़ती है ।  
            
 


तारीख: 18.03.2018                                    कमलेश संजीदा









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