अनकहा

मन मैं जगा एहसास फिर 
कुछ अनकहा, कुछ अनकहा 
मुझको हुआ है प्यार फिर 
कुछ अनकहा, कुछ अनकहा 

ये कैसा अंतर्द्वंद है
ये गीत है या छंद है 
ये देह क्यूँ निस्पंद है 
ये क्यूँ बजा संगीत फिर 
कुछ अनकहा, कुछ अनकहा  

क्यूँ मस्त सी चालें चले मौसम धरित्री के लिए 
क्यूँ बादलों के झुरमुटों से झांकती है चांदनी 
क्यूँ नीर नदिया को चले, नदिया समुन्दर की तरफ 
क्यूँ साज़ से संगीत निकले, राग से क्यूँ रागिनी 
कुछ-कुछ समझ रहा हूँ मैं 
सपनों मैं मिल रहा हूँ मैं 
और ये माहोल है 
कुछ अनकहा, कुछ अनकहा 

क्यूँ आज ये जीवन चला सम्मान देने को मुझे 
क्यूँ आज मुझपे प्यार की नैमत लुटाई जा रही है 
क्यूँ धकेला जा रहा है रौशनी में आज मुझको 
क्यूँ मेरे अंधियार की कीमत चुकाई जा रही है 
सैकड़ों जज़्बात फिर से 
सर उठाते जा रहे हैं 
उस पे तेरा साथ ये 
कुछ अनकहा, कुछ अनकहा  

प्यार परबत एक अविचल या लचकती एक डाली 
प्यार खुशियों का समुन्दर या सिसकता एक बादल 
प्यार साखू का कोई जंगल या चंचल एक झरना 
प्यार काँटों से भरा रस्ता है या फूलों का आँचल 
सूझता कुछ भी नहीं है 
याद अब कुछ भी नहीं है 
नाम है शायद मेरा 
कुछ अनकहा, कुछ अनकहा 

सब कुछ तो कह चूका हूँ मैं 
और है कुछ शेष तो 
रहने दो मुझको दोस्तों 
कुछ अनकहा, कुछ अनकहा 


तारीख: 09.06.2017                                                        मनीष शर्मा






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