कैसे भूल पाएँगे एवं अन्य कविताएँ

        ( मनहरण कवित्त छन्द )

 

              कैसे भूल पाएँगे

 

यादें यादों की गुरु गठरी में बाँध लेते हैं,

     घड़ी सुख-सन्ताप की साथ-साथ आई है।

साथी साँची कहूँ कैसे धीर धरूँ मन माहीं,

           बैचेनी बढ़ी बहुत उदासी उर छाई है।

बिछुड़न बेहद सताती साथी-संगियों को,

           करुण कविता ग़मगीन गहरी गाई है।

व्याकुल विदाई कितना करती कैसे कहूँ?

        “मारुत” मेरी आँखें अश्रु से भर आई है।।

 

 

 

           ( मनहरण कवित्त छन्द )

 

           आविष्कार और पाखण्ड

 

नामचीन नासा निरन्तर नाम कर रहा,

             ब्लेकहॉल बोले बोल बड़ी बातें करता।

तीन तरह की कल धुन ध्यान से सुनी है,

         आवाज़ अजीब अतीव कोलाहल करता।

दमकती दसों दिशाएँ दुनिया-दरिया में,

          विकास विज्ञान विद्या विवेक का करता।

देखो दीन दशा देव देश की मैली “मारुत”,

           प्राण प्रतिष्ठा पाखण्डी पाहनों में करता।।

 

 

            ( देव घनाक्षरी छन्द )

 

               कुछ कड़वा कहूँ

 

 

देवभूमि दिखाती दरवाजा साथी स्वर्ग का,

        नर-नारी नाशवान क्यों छोटी छींक से डरत।

जहाँ बड़ी-बड़ी दुर्लभ देवी दर्शन देती,

      वहाँ भोली-भाली दुहिता देवदासी क्यों बनत।

महानता महान देखी देवी-देवताओं की,

           “मारुत” महान मानुष मैल से कैसे जनत।

कल्याणकारक कहलाता देश देवियों का,

         बोले बालिका बेचारी देव दानव क्यों बनत।।

 


तारीख: 16.05.2025                                    पवन कुमार "मारुत"




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