महिला दिवस

उन्नीस सौ नौ से प्रारम्भ हुआ ,
आज एक सौ नौ साल हो गए ...
जिस उद्देश्य से प्रारम्भ हुआ ...
क्या वो पूरे हो गए ?


तो कैसी ख़ुशी , और कैसा उत्सव ?
और बोलो क्या बधाई दूँ ,
आठ बरस की बच्ची से दुराचार की ।
या हो रहे लेकिन उजागर ना हो रहे...
नित नए निर्भया हत्याकांड की ।
बताओ क्या जश्न मनाऊं ?


तिल - तिल मरती मानवता का ...
या फिर यात्रा वृतान्त लिखूँ ...
इंसानियत से हैवानियत का ।
सच कहूँ तो ये समय है ,
बधाई देने का नहीं , प्रण लेने का ।
नारी की रक्षा का , सम्मान का ।
राजनैतिक , सामजिक प्रगति का ।
एक बेहतर सुनहरे कल का ।


जहाँ खुलकर जियेगी हर नारी ,
देश के विकास में बराबर की लेगी हिस्सेदारी । 
जब चेहरे चमकेंगे बेखौफ़ी के श्रृंगार से ,
और हर आँगन गूंजेगा बच्चीयों के किलकार से ।
तब मै प्रफुल्लित मन से मंगल गीत गाऊंगा ,
हर्ष और उल्लास के साथ महिला दिवस मनाऊंगा ।


तारीख: 20.03.2018                                    शुभम सूफ़ियाना









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है