ये जो बच्चे दिख रहे हैँ न
झोपङीयोँ के अंदर,
इनकी जात से दुर ही रहना,
ऐसा मै नहीँ,
लोग कहते हैँ||
ये जो रो रहे हैँ न
ऐसा मुँह बनाकर,
सारा ढोँग है इनका,
ऐसा मै नही,
लोग कहतेँ हैँ||
ये जो चले आते है न
मासुमियत लिये पास तुम्हारे,
कुछ न कहना
कुछ न जताना
आँखे दिखाकर दुर भगाना,
ऐसा मै नही,
लोग कहते हैँ||
ये जो देख रहे हैँ न तुम्हे
युँ उम्मीद लगाकर,
इनकी रोती आँखो पे मत जाना
ये भितर से बङे छली होते हैँ,
ऐसा मै नही,
लोग कहते हैँ||
ये जो कभी पकङे पैर तुम्हारा
कभी तुम्हारा मँहगा कुर्ता खिँचे
झुकी नजरो से तुमको देखे
एक हाथ से आँखे मिचे..
तब बेमन से कुछ सिक्के देना
और झट से दुर हो जाना
वापस इस रस्ते से न आना,
ऐसा मै नही,
लोग कहते हैँ||
मगर कल ये रहेँगे खङे वहीँ,
वैसा ही मुँह बनाकर,
वैसी ही मासुमियत लिये,
और झुठी उम्मीद लगाकर,
धिरे इनके पास मे जाना
हल्के हाथो सर सहलाना,
आँखो मे चमक लिये
देखना फिर इनका मुस्कुराना,
और हाँ
जी करे तो अपना वो मँहगा कुर्ता भी दे जाना..
ऐसा लोग नहीँ,
मै कहता हुँ||