साँसों की आरी काट रही है
मन पर पड़ी पत्थर की चादर
हर आती साँस लाता मेहर खुदा का
ले जाती है अहम्, लालच और डर
एक सीढ़ी से बना है जीवन का डगर
पग पग चढना है बच कर सम्भल कर
मायावी सर्प फन फैलाये हैं लेते जकड़
साँसों की लड़ी को मन तू जोर से पकड़
साँस के हर मोती बने हों आस्था के सागर में
खो जाए सारा जीवन समर्पण के गागर में
मन की दीवारें ढह जाती हैं प्रेम के बाढ में
निर्वान में भीगती है रूह साधना के आषाढ़ में