तुम मुझे मिल जाना

इस कविता में कवियित्री ने हृदय-प्राण को ईश्वर अर्थात् अपनी आत्मा के प्रतीक के रूप में लिया है ।कवियित्री चाहती है कि वह अपने इष्ट को पूर्णतः आत्मसात कर ले,और वह अपने इष्ट को कहती है कि तुम मुझे मिल जाना भोर के सूरज बन और मैं तुमसे भोर की बेला में जीवन-ज्योति बन मिलती रहूँगी। तुम मध्यांतर में आंधी बन जाना और मैं सम्पूर्ण आनन्द बन कर मिल जाऊँगी।तुम रात को चांद बन मुझसे मिलना और मैं तुमसे शीतल चांदनी बन कर मिलती रहूँगी, धूलती रहूँगी,मिटती रहुँगी।इसी भाव को प्रदर्शित करती यह कविता "तुम मुझे मिल जाना"।


तुम मुझे मिल जाना 
उसी छायादार बरगद के नीचे 
जहां धरती अपने सौंदर्य से 
          सराबोर हो 
जहां गहरा नीला अम्बर 
          उद्धिग्न हो
जहां प्रपात और मृणाल भी 
क्षण-भर के लिए
अपने वेग को
अपने अस्तित्व को
और अपनी दिव्य-तीक्ष्ण गति को
           भूल जाते हो 
तुम मुझे मिल जाना 
 -------- मेरे हृदय के प्राण  


तुम मुझे मिल जाना 
--
फिर ना तुम ध्यानमग्न होना  
ना मुरली की धुन में बेसुध होना 
और ना गोपियों के संग रसीले होना 
तुम मुझे मिल जाना 
-------- मेरे हृदय के प्राण 


तुम मुझे मिल जाना 
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तुम भोर के सूरज बन
       मिल जाना 
और जीवन ज्योति बन महकना
तुम मध्यांतर में आंधी बन 
        मिल जाना 
और समस्त संसार को आनन्दित करना 
तुम संध्या में चांद बन 
        मिल जाना 
और रात को चांदनी से शीतल करना  
 तुम मुझे मिल जाना 
 -------- मेरे हृदय के प्राण


तुम मुझे मिल जाना  
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            मैं तुमसे 
भोर में जीवन-ज्योति बन
 मध्यांतर में सम्पूर्ण आनन्द बन
 संध्या में शीतल चांदनी बन 
                    मिलती रहूँगी
                     घुलती रहुँगी
                     मिटती रहुँगी 
तुम मुझे मिल जाना 
-------- मेरे हृदय के प्राण  
तुम मुझे मिल जाना 


तारीख: 21.10.2017                                    आरती









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