प्यार को सिर्फ़ इक़रार की ज़रूरत हैं।
तुमको भी मुझ से मोहब्बत हैं
माना अभी यकीं नहीं है मुझ पें वो बनाने से होगा।
गैरियत खुद-बेख़ुद मिट जाएगी अपनाने से होगा।
एक गुफ़्तगू ही बनेगी ज़रिया दिलों की डोर का।
तज़ुर्बा ख़ुद करों, यकीं क्यों भला किसी और का।
तुम्हारी मैं सुनु और कुछ मेरी भी तुम सुन लेना।
फ़लसफ़ा जिंदगी का नए हसीं लम्हों से बुन लेना।
ज़ख्म तन्हाइयों के कब तलक पालेंगे हम और तुम।
दोनों जिंदगी की नज़र कर ले मुहब्बत की शबनम।
चाहतें क़ैद क्यों जानम रिश्ता रिश्तें निभाने से होगा।
हारेंगी दूरियां, मेरा तेरे, तेरा मेरे पास आने से होगा।
माना यकीं अभी नहीं है मुझ पें वो बनाने से होगा।
गैरियत खुद-बेख़ुद मिट जाएगी अपनाने से होगा।
तकल्लुफ़ की हदों को तोड़ लबो को गुनगुनाने दों।
दिलों के राज आँखों ही आँखों से बयां हो जाने दों।
क्योंकि सनम प्यार को सिर्फ़ इक़रार की ज़रूरत हैं।
अब कह भी दो की तुमको भी मुझ से मोहब्बत हैं।