बचपन

तकलीफ तो होती है जब 
मन बेलगाम हो दौड़ जाता है 
बचपन की गलियों में 
कुछ किस्से थे 
कुछ कहानियां थीं 
झूठी थीं या सच्ची थीं 
परवाह किसे थी 
ढेरों सपनें 
आँखों में लिये 
पतंग की तरह उड़ते थे 
ऊंचे ऊंचे और ऊंचे 
दुनिया सारी सिमटती  थी 
माँ के आंचल में 
आती थी जिसमें 
कभी मसालों की सौंधी सौंधी खुशबु 
कभी-कभी नमी भी 
महसूस की मैंने 
उसके गीले आंचल में 
छूट गया सब धीरे-धीरे 
वक़्त भी बदला 
हम भी बदले 
वक़्त की परछाई में 
तकलीफ तो होती है......
 


तारीख: 21.02.2024                                    अनीता कुलकर्णी




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