प्यार एक बार फिर आएगा
बहरूपिया बन के
कभी चाँद के भेस में
बादलों के पीछे छुप जाएगा
कभी नदी के भेस में
मुझे सींचता हुआ बहता चला जाएगा
कभी नए-नए रास्तों के भेस में
मैं मापूँगी, वो आगे निकलता जाएगा
कभी भाँग के भेस में
मुझे अपने पंखों पे बिठा उड़ाएगा
कभी हँसी के भेस में
जो उसके कहने पे भी नहीं आएगी
पर साथ बैठे आँसू निकलवा देगा
कभी दोस्त के भेस में
प्रेमी सा हक़ जताएगा
कभी प्रेमी के भेस में
सबसे दोस्त कह के मिलवाएगा
कभी ज़िद्दी धूप के भेस में
जिसकी आँच में मैं चमक उठूँगी
पर अंत में मुझे झुलसा के जाएगा
कभी बेपरवाह हवा के भेस में
जो मुझे छूते हुए गुज़र जाएगा
पर आँख भी नहीं मिलाएगा
प्यार की यही तो खूबी है
वो रुकता नहीं है
मेरी दुनिया में तो नहीं रुकता