ऐ जिस्त बेमुकद्दर

ऐ जिस्त बेमुकद्दर 
मेरे दिल को धड़कना सिखा दे,
वर्षों से थमे हैं पलकों में जो ,
उन अस्कों को बहना सिखा दे । 
और सिखा दे मुझको रीत इस जहाँ की,
मुर्दों की इस बस्ती में, मुझको 
खुद से लड़ना सिखा दे । 

जल रहा जो, वो भी इक चिता है 
महसूस होता जिसे दहकता अंगार नहीं । 
है धड़कना बेमानी उसका 
जिस दिल से रिसता प्यार नहीं।

सूखे उन रगों में अब  
शोला सा कुछ खूं बहा दे । 
सुलगाकर पत्थर को भी जो,
बनाकर आँसू आँखों से बहा दे । 

दे गीत आज़ादी के,
मूक स्वरों को उन्मुक्त चहकना सिखा दे। 
और दे पंख सपनों की,
उन जिस्मों को उड़ना सिखा दे ।


तारीख: 06.06.2017                                    जय कुमार मिश्रा









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