ऐसी झलकियाँ तो न होंगी,
'बच्चन' की भी मधुशाला में।
देश महामारी से जूझ रहा,
और भीड़ लगी मधुशाला में।।
मन्दिर, मस्जिद और गुरुद्वारे की
भक्ति को बंद कर दिया ताला में।
नशे के मयखानों को खोल दिया
और भीड़ लगी मधुशाला में।।
निर्धन अभाव में जल रहा,
भूखे पेट की ज्वाला में।
समर्थ जाम पर जाम लगाए,
और भीड़ लगी मधुशाला में।।
छलक रहे कहीं दर्द के आँसू,
कहीं जाम अधर हाला में।
दाने-दाने को तरस रहे लोग,
और भीड़ लगी मधुशाला में।।
महिलायें भी मद्य लेने पहुँची,
मुँह छुपाये हुए दुशाला में।
मदिरा मिटाती भेदभाव सब,
और भीड़ लगी मधुशाला में।।
मधु की प्यास ही सबसे बड़ी
जान को रख दिया प्याला में।
समाजिक दूरियाँ गई तेल लेने
और भीड़ लगी मधुशाला में।।