बिरहन की पुकार

काले-काले बदरा क्यों मोहे सताये,
पिया ना आए, पिया ना आए ।
चाँद-चकोरि यही गीत गाये,
सावन बीता पिया ना आये ।।

पिया दरस को तरसे नैना,
बिन बादल क्यों बरसे नैना ।
बीती रतियाँ बहुत सताये,
क्यों ना पिया मोहे अंग लगाये ।।

पिया बिन अधूरी मेरी जवानी,
तुम बिन अधूरी मेरी कहानी ।
कब तक यूँ मैं रहूँ अधूरी,
पिया मिले तो बनूँ मैं पूरी ।।

गरज-गरज क्यों मोहें डराये,
पिया मिलन की शाम ना आये ।
हाथों में कंगना, फिर सुनी क्यों बाँहें,
आँखों में काजल क्यों सुनी निगाहें ।
क्यों मोरे नैना अश्रु बहाये,
रोके रुके ना बहती जाए ।।

क्या मैं बोलूँ अपने पिया से,
अपनी बेताबी कैसे बताऊँ ।
नज़र ना आए मोहे शर्म क्यों,
क्यों मैं बावरी बन मुसकाऊँ ।।

तोसे पिया जी मोहे प्यार है इतना,
सागर में मोती है जितना ।
पर अब सखियाँ मारे हैं ताना,
तेरे पिया को अब ना आना ।
आओ पिया जी करके बहाना,
बीते मौसम फिर ना आना ।।

छोड़ो तुम परदेश पिया जी,
देश की मिट्टी तुम बिन उदासी ।
आओ मोहे अंग लगा लो,
तुम बिन मैं बरसों से प्यासी ।।

बिरह की पीड़ा बिरहन जाने,
पिया ना आए गुज़रे ज़माने ।
बादल बनके आओ पिया जी,
बरसो मुझपे मुझको भीगा दो ।
तेरी तड़प में मर ना जाऊँ,
इस बिरहन की प्यास बुझा दो ।।

आया है संदेश पिया का,
अगले सावन उनको आना ।
ज़ारे काले बदरा, अब ना छाना,
अगले सावन फिर तु आना ।।


तारीख: 05.03.2024                                    अजीत कुमार सिंह









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