बदलते परिवेश में

akib javed kavita

बदलते परिवेश में
अटपटे 
भावोवेश में
गाँव का 
बदल रहा
हिस्ट्री,
जियोग्राफ़िया।
खलिहर बैठें
मनो मस्तिष्क
में शून्य लिए
खूब हो रहे
अपराध है।
सड़कों की
लम्बाई
चौड़ाई
बदल रहा
घर का 
परिमाप है।
गाँवों में
शहर 
का जन्म
हो रहा है!


तारीख: 27.01.2024                                    आकिब जावेद









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