जिसे दौलत हुई प्यारी, कहां वो नेक होते हैं,
वो पैसों के लिए ,तेजाब मुंह पर फेंक देते हैं,
निकल जाता है अपना काम तो ऐसे भी हैं बंदे ,
चिता की आग में भी रोटियों को सेंक लेते हैं।।
हवा के रुख से ,जिस दीपक को, अक्सर हम बचाते हैं,
उन्हीं के लौं, होके निर्मम, हथेली को जलाते हैं।
मगर बुझने नहीं देते कि, जिनको प्रेम है उनसे ,
हथेली चीज क्या ,वो दांव पर जीवन लगाते हैं।।
सिखाया था जिसे मैंने ,वो क्या रिश्ता निभाते हैं।
मेरे तरकश के ही तीरों को ,मुझपे आजमाते हैं।
मगर उनकी अदा, ऐ यार मुझको रास आती है।
जिसे उर में छुपाया है , वही मुझको सताते हैं।।
मेरी अर्थी सजाने को, कोई तैयार बैठा है,
बताऊं किस तरह सबको, कि मेरा यार बैठा है।
प्रतीक्षा है उसे केवल, हमारे दम निकलने की,
हमारे जिस्म में खंजर, वो कब का मार बैठा है।।