एक अनसुनी दास्तान

वो दूर से आती उसके कदमों की आवाज़,
क्या ये सिर्फ है मेरे मन का आभास?
लगा जो बैठा हूं मैं उसकी आस,
क्या वो आना चाहेगी मेरे पास।


मैं वहीं हूं जिसे है तुम्हारा इंतज़ार,
कभी हूं इस पार तो कभी उस पार,
न ठिकाना मेरा बस दिल पे है ये भार,
पहुंचा आना ओ मेरे पंछी उसको मेरा तार।


कभी जो न मिला मैं तो बता देना उसे,
की ज़िंदगी तो एक फलसफा है प्रिये,
डूब जाना है किसी न किसी दिन इसे,
और मिल जाना है माटी में हमें नीर जैसे।
 


तारीख: 14.02.2024                                    साहित्य मंजरी









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