गीतिका

वेद भी यही कहे ; यही कहे क़ुरान है,
प्रेम ना मिले जहाँ ; निलय नहीं मकान है।

दंश भेदभाव का निकाल दो समाज से,
ऊँच नीच ना करो सभी यहाँ समान है।

सैकड़ों कुरीतियाँ डकार ले न पीढ़ियाँ,
छोड़कर कुरीतियाँ बढ़े वही सुजान है।

भोर जो खिला कुसुम ; दिनांत कुम्हला गया,
बात सत्य है कि मृत्यु नियति का विधान है।

शून्य है सरल सहज जिसे नहीं घमंड है,
शून्य है अनूप जो कि अंक का वितान है।

भिन्नता कई यहाँ परंतु प्रेम है बहे,
भूमि वीर, धीर की अतुल्य है, महान है।


तारीख: 19.03.2024                                    मौसम कुमरावत









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है