हुस्न का बाज़ार

हुस्न के बाज़ार में, हम दिल ले कर खड़े हैं


बेवफाई के आलम में भी, हम इश्क़ के लिए अड़े हैं

तुझे पाने के लिए, लोग पहले भी लड़े थे, अब भी लड़े हैं

हम कल भी खड़े थे, अब भी खड़े हैं

इस बाज़ार में न दर्द हैं, न प्यार हैं, चंद पैसो के लिए हर इंसान बिकने को तैयार हैं

यहां सब कुछ तो बिक गया, जो बचा, बस वही प्यार हैं

यहां जिस्म की नुमाईश हैं, दिलों में फरेब हैं

ईमान नहीं किसी का, बस पैसो का ही ऐब हैं

दिन भर थक कर,शाम को किसी की चौखट पर ही सो गये

वो भी टूटी थी, दर्द था शायद किसी की बात का, उसने बाहें फैलाई, हम उसी के हो गये


तारीख: 12.04.2024                                    अंकित कुमार श्रीवास्तव









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