जीवन संघर्ष की आज कथा सुनाऊँ,
क्या मैं, अपनी यह, व्यथा सुनाऊँ,
कुछ रचा ऐसा, नया आयाम, नहीं है,
उपलब्धि जैसा भी कुछ काम नहीं है,
संघर्ष को भी, मिला विराम, नहीं है,
किसी भी जुबान पे मेरा नाम नहीं है,
एक पल को भी मिला आराम नहीं है,
बस यूँ, जीने की, एक रसम् निभाऊँ,
मन के, इस दर्द को मैं कंहा ले जाऊं,
क्या ये व्यतिथ मैं, अपनी कथा सुनाऊँ,
सपनो में, कोई भी, रंग, भर न पाया,
श्री चरणो में, भी ना यूँ, ध्यान लगाया,
किसी से, कभी कुछ भी, कह ना पाया,
उस, मृगतृष्णा, ने तो , खूब उलझाया,
दोस्तों ने भी तो खूब वो फ़र्ज़ निभाया,
कहे बिना यह सब, मैं रह नहीं पाया,
जीवन पथ पर, चलना, सब को अकेला,
तुझे इस जीवन का अब यह मर्म बताऊँ,
जीवन संघर्ष की आज कथा सुनाऊँ,
क्या मैं, अपनी यह, व्यथा सुनाऊँ!!