जीवन
एक बडे हादशा से होकर गुजर रहा है
मन व्यथित है।
पीछे मुडकर
दूर तक देखता हूँ
कहाँ क्या चुक हो गया?
सबकुछ जल चुका है
राख के ढेर में
अब
मैं सपनों का किरचन बीन रहा हूँ।
सोचता हूँ
अगर मैंने यह किया होता
काश यह हादशा न हुआ होता !
उसने अगर यह न किया होता
यह सब मीठे जुमले हैं
विचार के
कभी फिट नहीं बैठता जिंदगी में
मैं अब जान गया हूँ
लाभ-हानी दोनों जीवन के ही अंग हैं।
जिंदगी
अब कठिन समय से होकर गुजर रहा है
लेकिन मुझे यकीन है
मेरे सपनों के फूल खिलेंगे
महकेगा अपना चमन
फिर से चिडिया चहचहाएगी
जिंदगी को सँवारकर
निकल आऊँगा मैं
फिर इस घुटन से बाहर।