जीवन का आधा भरा ग्लास

हर वक़्त परेशां,
फिर शकूं की तलाश,
जो नहीं मिला उसकी खोज,
जो मिला उस से निराश,
दिन रात, अथक अनवरत प्रयास,
सिर्फ खोने का गम,
भूला हूँ जाने कब से,
कुछ पाने का उल्ल्हास,
मिथक में इस जीवन के,
भरने को यह आधा ग्लास

शब्द मौन,
तन्हाई का अट्टहास,
नज़रें आसमान पर,
जमीन पे टिके रहने का प्रयास,
उलझन ,किंकर्तव्यविमूढ़ हर पल,
ना जाने पाली कौन आस,
शाबाशियाँ जाती रहीं,
सिर्फ लब पर रहा काश,
मिथक में इस जीवन के,
भरने को यह आधा ग्लास।

खुली आँखों के स्वप्न,
स्वप्न जीने की अभिलाष
मार के खुद का आज,
स्वर्णिम भविष्य की आस,
रेगिस्तान के मृग सी,
मरीचिका का एहसास,
जाने कब से तड़पा हूं,
बुझती नहीं ये प्यास,
मिथक में इस जीवन के,
भरने को यह आधा ग्लास।


तारीख: 08.04.2024                                    दिनेश पालिवाल









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