उन आँखों की गहराइयों में जब उतरता हूँ तो ख्याल आता है,
काश ! कि मुझे तैरना न आता और,
मैं डूबता, बस डूबता चला जाता।
मुझे देख वो चेहरे पे आई मध्धम सी मुस्कान का मतलब,
काश ! कि मैं समझ पता और,
अपने दिल के कश्मकश के तूफ़ान से पार पाता।
तेरे पैरों को चूमती पाजेब की खनक की हरेक धुन,
काश ! कि अपने ज़हन में उतार पाता,
फिर मारवा और भैरवी का मुकम्मल इंतज़ाम हो जाता।
तेरी तकलीफ रुपी बारिश की हर बूँद की खातिर,
काश ! कि मैं गोवर्धन उखाड़ ले आता और,
तेरे प्रसंशा के आलिंगन से बार बार मरता, और जी जाता।
यूँ तो नदियां अनंत हैं, अनगिनत है, पर
काश ! कि तेरी दरिया के अमृत का दो बूँद नसीब हो जाता
फिर इस जीवन से कोई शिकवा कोई शिकायत न रह जाता।
काश ! कि एक आशियाना होता छोटा सा, एकांत सा,
और बस तू मुझे , मैं तुझे देख पूरी उम्र निकाल जाता।